SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 314
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 248... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... केनेडा के डॉ. रोबर्ट फ्लिक 'Lessons of Living' में लिखते हैं कि 'रोग नाश हेतु शुभ भावना नितांत जरूरी है।' परमात्मा के समक्ष प्रार्थना करने से चिंता-दुःख-आपदा सभी का निवारण होता है। क्रोध-द्वेष-ईर्ष्या आदि दूर होने से हृदय में निष्काम भगवत प्रेम उत्पन्न होता है। कौटुम्बिक, सामाजिकव्यावहारिक झगड़े समाप्त होते हैं। इस प्रकार वैयक्तिक एवं सामाजिक सुखशांति उपलब्ध होती है। विश्व शांति की भावना पल्लवित होती है। उत्कट परमात्म प्रेम उत्पन्न होता है जिसके द्वारा परमात्मा दशा की संप्राप्ति होती है। सार तत्त्व यह है कि वीतराग के समक्ष प्रार्थना करने से वीतराग बनने के मार्ग पर कदम आगे बढ़ते हैं। ___ कई लोग शंका करते हैं कि परमात्मा के आगे प्रार्थना करने से समस्याओं का समाधान कैसे होता है, क्योंकि परमात्मा तो किसी का कुछ नहीं करते? . एक तरफ हम कहते हैं कि परमात्मा वीतराग हैं। वे किसी का कुछ नहीं करते। सभी अपने कर्मों के अनुसार फल प्राप्त करते हैं। तो फिर परमात्मा के आगे प्रार्थना करने से समस्या का समाधान कैसे हो सकता है? ___ यह अपनी-अपनी श्रद्धा का विषय है। श्रद्धा रखकर प्रयत्न किया जाए तो अवश्य समाधान होता है। वस्तुत: परमात्मा कुछ नहीं करते परंतु भक्त के मन में रहे हुए श्रद्धा एवं समर्पण के भाव ही कार्य सिद्धि में सहायक बनते हैं। वैज्ञानिक भी इस तथ्य को मानते हैं कि जब हमारे भीतर श्रद्धा भाव या प्रेम भाव उत्पन्न होता है तो एक विशेष प्रकार का स्राव हमारी ग्रन्थियों से निःसृत होता है। इससे कुछ विशिष्ट शक्तियाँ हमारे भीतर जागृत होती हैं, जो कठिनतर कार्यों को भी सहज बना देती है। जैसे- मीरा के श्रद्धा भाव से जहर का प्याला भी अमृत बन गया। श्रद्धावान को ही पत्थर की प्रतिमा में परमात्मा के दर्शन होते हैं और श्रद्धा न हो तो साक्षात परमात्मा भी पत्थर नजर आते हैं। परमात्मा का स्वरूप हमारे समक्ष एक आदर्श होता है। प्रत्येक आत्मा परमात्मा के समान ही शक्ति संपन्न एवं गुण सम्पन्न है। परमात्मा के सामने प्रार्थना करते हुए उसी शक्ति एवं गुणों का जागरण होता है। किसी भी कार्य को करते हए जब उसके प्रति पूर्ण समर्पण एवं निष्ठा होती है तो वह कार्य अवश्य सिद्ध होता है। ___ प्रभु दर्शन, तीर्थ यात्रा, जप साधना आदि तो कर्म निर्जरा एवं पुण्य जागरण के साधन हैं। जैसे-जैसे व्यक्ति भक्ति एवं श्रद्धा भाव से यह कार्य करता
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy