SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 312
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 246... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... शब्द नहीं होते फिर भी उनके भाव परमात्मा तक पहुँचते ही हैं। यही भावों की अभिव्यक्ति एक दिन परमात्म स्वरूप की प्राप्ति करवाती है। प्रार्थना परमात्मा के समक्ष क्यों करनी चाहिए? प्रार्थना या याचना उसी के समक्ष की जाती है जो उसे पूर्ण करने में सक्षम हो, स्वयं उन गुणों से युक्त हो। जैसे धनवान से ही धन की, ज्ञानवान से ज्ञान की, वैद्य से दवाई की एवं न्यायाधीश से न्याय की याचना की जाती है क्योंकि वे उसे देने का सामर्थ्य एवं योग्यता रखते हैं। परन्तु इन सभी की कुछ सीमाएँ हैं, उसके बाद निश्चित नहीं कि उनके समक्ष याचना करने से भी वे उसे पूर्ण करेंगे या नहीं। प्रार्थना अपने से अधिक सामर्थ्यवान के आगे की जाती है और परमात्मा के समतुल्य कोई नहीं है। परमात्मा एवं गुरु दोनों में ही आध्यात्मिक एवं व्यावहारिक विकास करने का पूर्ण सामर्थ्य होता है। उनके समक्ष की गई प्रार्थना निश्चित रूप से फलीभूत होती है। परमात्मा सर्वज्ञ है, सर्व गुणों के धारक हैं। यद्यपि वे वीतराग एवं सिद्ध अवस्था में होने से हमें कुछ देने वाले भी नहीं हैं। परंतु जैन आगमों के अनुसार "अप्पा सो परमप्पा" हर आत्मा में परमात्मा है और परमात्मा को देखकर परमात्म अवस्था की प्राप्ति का लक्ष्य निर्मित होता है। परमात्मा के शीतल चरणों में क्या कामना करें? भक्त परमात्मा के समक्ष बालक की भाँति अपने मनोगत भावों को निश्छल रूप से अभिव्यक्त कर सकता है। किसी भी प्रकार की याचना कर सकता है किन्तु यह विवेक रखना जरूरी है कि जो जिस कोटि का हो उसके अनुरूप उसके समक्ष प्रार्थना होनी चाहिए। जिनेश्वर परमात्मा जिन्होंने समस्त सांसारिक सुख-ऐश्वर्य आदि को हेय मानकर उसका त्याग कर दिया, उनसे नाशवंत सुखों की प्राप्ति हेतु प्रार्थना करना निरीह मूर्खता है। सुख-दु:ख तो स्व-कर्म कृत हैं। इस सम्बन्ध में परमात्मा कुछ नहीं कर सकते। हाँ! प्रतिकूल परिस्थितियों में परमात्मा के जीवन चरित्र का स्मरण करने से समत्व वृत्ति में जीने का अभ्यास होता है। अत: परमात्मा के समक्ष लौकिक सुख-समृद्धि की प्रार्थना नहीं करते हुए जैसे आप समभाव में रहे मैं भी वैसे ही समस्थिति में रहूँ यह प्रार्थना करनी चाहिए। इसी के साथ सांसारिक दुःख एवं मोह माया के जंजाल से मुक्त होकर मोक्ष सुख की उपलब्धि हेतु कामना करनी चाहिए।
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy