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________________ 232... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... निसीहि त्रिक, मर्यादा बोध का अनुपम उपाय कैसे ? निसीहि एक निषेधात्मक शब्द है। जिन दर्शन विधि में तीन अलग-अलग स्थानों पर निसीहि उच्चारण के यथोचित कारण एवं रहस्य हैं। मन्दिर में प्रवेश करते समय प्रथम निसीहि का उच्चारण करने मात्र से ही संसार के समस्त बंधन एवं जंजालों का त्याग हो जाता है। इसी के साथ यह त्रिक मन्दिर के प्रति रहे कर्त्तव्यों के प्रति भी सजग होने की सूचक है। 11 इसी कारण दूसरी निसीहि में मन्दिर सम्बन्धी कार्यों का भी त्याग किया जाता है। यद्यपि आजकल मन्दिर सम्बन्धी समस्त कार्य पूजारी के कर्त्तव्य माने जाते हैं। यदि बीच में रखे हुए पाटे से आने-जाने वाले को ठोकर लग रही है तो भी उसे उठाएगा पुजारी ही। परमात्मा, मन्दिर एवं श्रावक तीनों ही पुजारी के भरोसे हैं। पुजारीजी मेहरबान तो मन्दिर का उत्थान वरना वहाँ सिर्फ परमात्मा की आशातना ही होती है। मन्दिर की सार-संभाल करना ही परमात्मा की यथार्थ सेवा भक्ति है । यदि हमारे Boss या कोई मिनिस्टर घर पर आ जाए तो हम उनकी एक-एक सुविधा के प्रति कितने सजग रहते हैं, नौकर का कार्य स्वयं करने लग जाते हैं। ऐसी स्थिति में तीन लोक के नाथ परमात्मा के सामने कोई भी कार्य करना हो तो कैसी शर्म? सिर्फ भगवान को भजना और भगवान के दरबार की सुंदरता आदि के विषय में अथवा जिन आज्ञा की चिंता नहीं करना परमात्मा की सच्ची भक्ति कैसे हो सकती है ? दूसरी निसीहि के द्वारा मन्दिर सम्बन्धी व्यापार का भी त्याग कर दिया जाता है।12 इससे द्रव्य पूजा के द्वारा प्राप्त होने वाले सम्पूर्ण आनन्द की अनुभूति एवं रसास्वादन किया जा सकता है। तीसरी निसीहि परमात्मा के गुणगान हेतु शुभ अध्यवसायों का निर्माण कर हुए भक्त और भगवान को एकतार करती है। 13 किसी भी कार्य में एकाग्रता की वृद्धि हेतु इस नियम का परिपालन श्रेष्ठतम मार्ग है। प्राचीन कहावत है'एक साधे सब सधे सब साधे सब जाए।' निसीहि इसी उक्ति को सार्थक करते हुए भक्ति साधना में सहायक बनती है तथा कर्त्तव्यबोध का जागरण करते हुए कर्तृत्व विचारों से ऊपर उठाती है।
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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