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________________ 218... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... पर दी गई है। इनमें भी कहीं-कहीं पर अंतर परिलक्षित होता है। जैसे कि जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति में वर्णित भगवान ऋषभदेव के जन्माभिषेक में प्रयुक्त कुछ पदार्थ सिद्धायतन की जिनप्रतिमाओं की पूजा में नहीं आते जैसे तीर्थोदक, तीर्थमृत्तिका, सर्वौषधि, सिद्धार्थक और तुअरे पदार्थ। शेष सभी उपादान सामग्री पूर्वकालीन पूजा विधानों में समान ही होती थी। ___ मध्यकाल में पूजा संबंधी उपादान सामग्री के अन्तर्गत यक्षकर्दम, गोरोचन, सर्वौषधि, सिद्धार्थक, तीर्थोदक, तुअरे पदार्थ, तीर्थ मृत्तिका इन वस्तुओं का उपयोग प्राण प्रतिष्ठा आदि विशेष प्रसंगों पर ही होता था। धीरे-धीरे विक्रम की आठवीं शती से सर्वौषधि, सिद्धार्थक, गोरोचन का सर्वोपचारी पूजा में भी प्रयोग होने लगा। बारहवीं सदी के कुछ आचार्यों द्वारा पंचामृत से अभिषेक करने का उल्लेख प्राप्त होता है। दिगम्बर परम्परा में आज भी पंचामृत से अभिषेक किया जाता है। अर्वाचीन पूजा पद्धति में पूर्वकाल की अपेक्षा अनेक नए उपकरण एवं उपादान सामग्री का समावेश हो चुका है। कई प्राचीन उपकरण वर्तमान में प्रयुक्त नहीं होते। कुछ का प्रयोग सत्रहभेदी पूजा, अठारह अभिषेक आदि विशेष प्रसंगों पर ही होता है। मध्यकाल में प्रातः काल के समय वासपूजा करने का अटल नियम था। वह अर्वाचीन समय में नहीवत रह गया है। मध्यकाल तक जिनबिम्ब का अभिषेक करने हेतु प्रक्षाल योग्य जल को केसर, कस्तूरी, कपूर आदि मिलाकर सुगन्धित करते थे वहीं वर्तमान में शुद्ध सादे जल में थोड़ा दूध या पंचामृत मिलाकर प्रक्षाल कर लिया जाता है। अंगर्छन हेतु भी पूर्व काल में शुद्ध, नवीन एवं सुगन्धित वस्त्र का प्रयोग होता था वहीं वर्तमान में नित्य प्रक्षाल के कारण तीन अंगलूंछन वस्त्र एवं वालाकुंची का प्रयोग होने लगा है। पूर्वकालीन पूजा पद्धति में आरती, दीपक और मंगलदीपक का प्रयोग नहीं होता था वहीं मध्यकाल में उपादान सामग्री के बढ़ने से आगमों में उल्लेखित चौदह प्रकार की पूजा के भेद चौदह से बढ़कर सत्रह हो गए हैं। पूर्वकाल में प्रचलित विविध प्रकार के कलश, रत्नकरंडक आदि का प्रयोग मध्यकाल में ही बंद हो गया था। वहीं मध्यकाल में पंचोपचारी एवं अष्टोपचारी पुजाओं के प्रारंभ होने से अनेक नए उपकरण एवं उपादान सामग्री का समावेश हुआ।
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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