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________________ मन्दिर जाने से पहले सावधान ...201 समझकर उसे गौण कर जाती है। आज मंदिर सम्बन्धी कार्य व्यवस्था पुजारियों के भरोसे तथा अर्थव्यवस्था पदाधिकारियों के भरोसे रखकर कुछ लोग टीकाटिप्पणी करके मात्र आनंद लेते हैं तो कुछ लोग मूक दर्शक बन सब कुछ देखते रहते हैं। इन परिस्थितियों में पदाधिकारियों का दायित्व बहुत अधिक बढ़ जाता है। पदव्यवस्था का गठन मंदिरों के सुसंचालन तथा देवद्रव्य आदि के सम्यक उपयोग एवं संचय हेतु किया जाता है। अतः पदाधिकारी वर्ग में जागरूकता, गंभीरता, कर्तव्यनिष्ठा, निःस्वार्थ वृत्ति आदि परमावश्यक है । पदाधिकारियों को अपने पद का अभिमान या अन्य स्थानों पर उसका प्रदर्शन नहीं करना चाहिए | आजकल व्यक्ति अधिक से अधिक स्थानों का ट्रस्टी बनना चाहता है ताकि समाज में उसका वर्चस्व (Reputation) बढ़े। परन्तु क्या वह अपने दायित्वों के प्रति भी उतना ही जागरूक है? युवा वर्ग का मानना है कि पदाधिकारी लोग अपना पद छोड़ना ही नहीं चाहते, इसी कारण युवा वर्ग धर्म के क्षेत्र में अपनी नई सोच एवं तकनीकों के अनुसार कोई परिवर्तन नहीं ला सकते। वहीं अनुभव प्राप्त मुखिया वर्ग यह मानता है कि यदि अल्पज्ञ या स्वार्थी लोगों के हाथ में मन्दिरों की बागडोर चली जाएगी तो महा अनर्थ हो जाएगा। यदि वे लोग नहीं संभाल पाए तो व्यवस्था गड़बड़ हो जाएगी, समाज का पतन होगा तथा देवद्रव्य की भी हानि होगी। इसलिए न चाहते हुए भी वे पदों पर आरूढ़ हैं । किन्तु उनके जाने के बाद भी तो वह परिस्थिति बनेगी ही, अतः बेहतर तो यही होगा कि अपने सामने ही समाज के लिए योग्य कर्णधार उन्हें तैयार कर देने चाहिए। युवा वर्ग को आगे लाने का प्रयास करना चाहिए। पद पर आसीन होने से कोई योग्य नहीं कहलाता है तथा पद छोड़ देने से समाज में वर्चस्व कम होता हो ऐसा नहीं है अपितु दूसरों को पद सौप कर उन्हें योग्य बनाने से समाज की नींव अधिक मजबूत होती है। अत: उन्हें उदार बनकर समाज के उत्थान में सहायक बनना चाहिए। मुखिया बनना कभी लक्ष्य नहीं होना चाहिए। यदि समाज आग्रहपूर्वक जिम्मेदारी दे भी दें तो उसे प्रभु चरणों की सेवा समझकर निःस्वार्थ एवं निरभिमान भाव से उसका निर्वाह करना चाहिए । आज मंदिरों में बढ़ते देवद्रव्य की उचित व्यवस्था भी एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। ट्रस्टी वर्ग को मात्र बैंक बैलेंस बढ़ाने की अपेक्षा वर्तमान
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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