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________________ 190... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... 13. पंचाशक प्रकरण, 3/17 14. पायं इमीए जत्ते ण होइ, इहलोगियावि हाणित्ति । णिरूवक्कम भावाओ, भावोऽवि हु तीइ छेयकरो ॥ पंचाशक प्रकरण, 3/15 15. इक्कोवि णमुक्कारो, जिणवर वसहस्स वद्धमाणस्स । संसार सागराओ, तारेइ नरं व नारि वा।। (क) सिद्धाणं बुद्धाणं सूत्र जो भावओ इमीए, परोऽवि हु अवड्ड पोग्गला अहिगो । संसारो जीवाणं हंदि, पसिद्धं जिणमयम्मि ।। (ख) पंचाशक प्रकरण 3/32 एक बार प्रभु वन्दना रे, आगम रीते थाय । कारण सत्ते कार्य नी रे, सिद्धि प्रतीत कराय ।। (ग) संभवनाथ जिन स्तवन, गा. 5, देवचंद्र चौबीसी 16. एहनुं फल दोय भेद सुणीजे, अनंतर ने परंपर रे। . आणा पालण चित्त प्रसन्नी, मुगति सुगति सुर मन्दिर रे ।। सुविधिनाथ जिन स्तवन, गा-4, आनंदघन चौबीसी 17. णो भावओ इमीए, परोऽवि हु अवड्डपोग्गला अहिगो । संसारो जीवाणं हंदि, पसिद्धं जिणमयम्मि । पंचाशक प्रकरण, 3/32 18. इय तंतजुत्तिओ खलु, णिरूपियव्वा बुहेहिं एसत्ति । ण हु सत्तामेतेणं, इमीइ इह होइ जेव्वाणं । पंचाशक प्रकरण, 3/33 19. तिव्व गिलाणादीणं, भेसजदाणाइयाइं णायाई। दट्ठव्वाइं इह खलु, कुग्गहाविरहेण धीरेहिं ।। पंचाशक प्रकरण, 3/50 20. मोक्खद्धदुग्ग गहणं, एयं तं सेसगाणवि पसिद्धं । भवियव्वमिणं खलु, सम्मति कयं पसंगणं । पंचाशक प्रकरण 3/16 21. अरिहंत चेइयाणं सूत्र
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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