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________________ 174... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... हैं- 1. दंडक और स्तुति- इन दोनों के युगल रूप में अर्थात अरिहंत चेइयाणं एवं एक स्तुति पूर्वक 2. दंडक और स्तुति दोनों के युगल अर्थात दो दंडक एवं दो स्तुतिपूर्वक चैत्यवंदन करना 3. पाँच दंडक एवं चार स्तुति का एक जोड़ा अर्थात स्तुति युगल। इस प्रकार मध्यम प्रकार के चैत्यवंदन के तीन उपभेद हैं। चैत्यवंदन सूत्रों में वर्णित पाँच दंडक में से अरिहंत चेइयाणं यह चैत्यस्त्व दंडक कहलाता है। अरिहंत चेइयाणं और अन्नत्थ सूत्र बोलते हुए एक नवकार के कायोत्सर्ग पूर्वक स्तुति बोलने पर प्रथम प्रकार का मध्यम चैत्यवंदन होता है। दो दंडक और दो स्तुति पूर्वक अर्थात शक्रस्तव (नमुत्थुणं) और चैत्यस्तव (अरिहंत चेइयाणं) ये दो दंडक तथा अध्रुव और ध्रुव ऐसी दो स्तुति पूर्वक द्वितीय प्रकार का मध्यम चैत्यवंदन होता है। भिन्न-भिन्न तीर्थंकरों की स्तुति अथवा चैत्य सम्बन्धी स्तुति अध्रुव स्तुति कहलाती है क्योंकि उसमें नाम बदलता रहता है। लोगस्ससूत्र जिसमें 24 तीर्थंकरों की स्तुति की गई है, वह ध्रुव स्तुति है। पूर्वकाल में स्तुति के पश्चात लोगस्स सूत्र बोला जाता था। वर्तमान में मात्र प्रथम स्तुति तक ही चैत्यवंदन किया जाता है। तीसरे उत्कृष्ट चैत्यवंदन में पाँचों दंडक एवं चार स्तुति के जोड़े से चैत्यवंदन किया जाता है। इन तीनों प्रकार के चैत्यवंदन को जघन्य- मध्यम, मध्यम-मध्यम और उत्कृष्ट मध्यम चैत्यवंदन भी कहते हैं। __3. उत्कृष्ट चैत्यवंदन- पाँच दंडक, चार स्तुतियों के दो जोड़े, स्तवन एवं तीन प्रणिधान सूत्र पूर्वक चैत्यवंदन करना उत्कृष्ट चैत्यवंदन है। नमुत्थुणं, अरिहंत चेइयाणं, लोगस्स, पुक्खरवरदी एवं सिद्धाणं बुद्धाणं यह पाँच दंडक सूत्र हैं। चार स्तुतियों में से प्रारम्भिक तीन स्तुतियाँ अधिकृत तीर्थंकर परमात्मा से सम्बन्धित होने के कारण उन्हें एक 'वंदना स्तुति' ही गिनते हैं तथा चौथी सम्यग्दृष्टि देवी-देवताओं के स्मरण वाली स्तुति को 'अनुशास्ति' नामक दूसरी स्तुति गिनने का सिद्धान्त है। इस प्रकार स्तुति चतुष्क का अभिप्राय आठ स्तुति या दो स्तुति युगल से है। इसी के साथ जावंति चेइयाई, जावंत केवि. साहू और जय वीयराय यह तीन प्रणिधान सूत्र हैं। इन सभी सूत्रों के समायोजन से उत्कृष्ट चैत्यवंदन किया जाता है। वर्तमान प्रचलित देववंदन विधि का समावेश उत्कृष्ट चैत्यवंदन में होता है। कुछ आचार्यों ने नमुत्थुणं सूत्र की संख्या के आधार पर भी चैत्यवंदन के
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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