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________________ 162... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... रूपी अलंकारों से सुशोभित हो रहे हैं। अत: आपको तो इन पुष्पों की कोई आवश्यकता नहीं है परन्तु आपको पुष्प चढ़ाने से मेरे आत्मा की दुर्गुण रूपी दुर्गंध नष्ट हो जाती है। हे सुखदाता! आपकी पुष्पपूजा के प्रभाव से मुझे भी आपके सद्गुणों की महक प्राप्त हो तथा मेरे अन्तरंग में ईर्ष्या, द्वेष, विषय-कषाय के रूप में जो दुर्गुण भरे हुए हैं, उनका निकास हो। ____जिस प्रकार रोगी को पुष्प देकर उसके शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की प्रार्थना की जाती है, शादी में पुष्प देकर उज्ज्वल भविष्य की कामना की जाती है उसी तरह मेरी आत्मा को संसार के मोहरोग से शीघ्र मुक्ति मिले तथा अध्यात्म मार्ग में मेरा भविष्य उज्ज्वल बने यही भावना करता हूँ। हे शरणागत प्रतिपाल! कुमारपाल महाराजा ने पूर्वभव में उत्तम भावों से पुष्प चढ़ाकर अठारह देश का अधिपत्य प्राप्त किया तथा गणधर पद को भी प्राप्त करेंगे। नागकेतु ने पुष्पपूजा करते-करते केवलज्ञान को प्राप्त किया हे प्रभु! मैं भी सर्वज्ञदशा को प्राप्त करूं। हे जगत वत्सल! इस द्रव्य खुशबू को अर्पण कर मैं भाव सुगंध को पाने की भावना करता हूँ। धूप पूजा से पाएं शील सुगंध अरिहंत परमात्मा की धूप पूजा करते वक्त शुद्ध और सुगंधित धूप अर्पण करते हुए यह भावना की जाती है कि हे चिदात्मन्! आपकी धूप पूजा समस्त कर्म रूपी ईन्धन को जलाकर निर्मल संवर भावना रूपी सुगंध को प्रसरित करने वाली तथा अशुद्ध पुद्गल परमाणुओं को दूर करने वाली है। हे परमात्मन्! जैसे धूप करने से अशुभ गन्ध नष्ट होती है एवं शुभ गन्ध सर्वत्र प्रसरित होती है वैसे ही धूप पूजा करने से मेरी अशुभ भाव रूपी दुर्गन्ध नष्ट होकर शुभ भावों का सौरभ प्रकट हो। पूर्वकृत कर्मों के कारण कई जीवों से मेरी वैर-विरोध की परम्परा भी चली आ रही है। आत्म जागति के द्वारा विरोधी जीवों के हृदय को भी शांति प्रदान करूं एवं शील की सुगंध से सबके हृदय को प्रसन्न कर सकू, ऐसी कृपा करें। हे शिवात्मन्! जैसे धूप जलकर राख हो जाता है एवं उसका धुआं
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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