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________________ 150 ... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... · पुरुषों को अलग से मुखकोश नहीं बांधना चाहिए अपितु खेस (दुपट्टा ) केही आठ पट करके मुखकोश बांधना चाहिए। • पूजा करके भगवान की गोद में मस्तक रखना, उनके पैर दबाना आदि करने का विधान नहीं है । • सोने अथवा चाँदी के टीके जहाँ लगे हों वहाँ पूजा करनी चाहिए। • चंदन पूजा हेतु स्वयं को चंदन रस तैयार करना चाहिए। जिनालय में उपलब्ध केशर आदि का प्रयोग करने से वीर्यान्तराय आदि का बंधन होता है तथा स्वद्रव्य के लाभ से भी वंचित रहते हैं। • पार्श्वनाथ भगवान के फण आदि की पूजा करना आवश्यक नहीं हैं। यदि सुंदरता आदि की अपेक्षा से पूजा करनी भी हो तो उसी केशर से पूजा कर सकते हैं। • परमात्मा की हथेली को खाली नहीं रखना चाहिए। उसमें सोने या चाँदी का बिजोरा, श्रीफल, पान, सुपारी, रौप्यमुद्रा आदि रखना चाहिए। • जितने केशर की आवश्यकता हो उतनी ही केशर का प्रयोग करना चाहिए। पूजा की थाली, कटोरी आदि उपकरणों को यहाँ-वहाँ नहीं रखते हुए उन्हें धो-पूंछकर उसे यथास्थान रखना चाहिए। • बची हुई केशर को सुखाकर उसका उपयोग वासक्षेप, माला आदि बनाने में किया जा सकता है। सिन्थेटिक केशर, बरास एवं चंदन आदि का प्रयोग जिनपूजा में नहीं करना चाहिए। • चंदन रस पानी के समान पतला नहीं होना चाहिए। • पुष्प पूजा सम्बन्धी सावधानियाँ • पुष्पपूजा हेतु पुष्पों को पानी से नहीं धोना चाहिए। इससे लीलन-फूलन (Fungus), कुंथुआ आदि जीवोत्पत्ति की संभावना रहती है। • फूल सूंघकर परमात्मा को नहीं चढ़ाना चाहिए। शुष्क भूमि पर गिरे हुए, अर्ध विकसित टूटे हुए, कीड़े लगे हुए, मुरझाए हुए, अशुद्ध स्थान में उत्पन्न हुए, ऋतुवती (M.C.) महिला द्वारा लाए गए फूलों को नहीं चढ़ाना चाहिए। • फूलों की पंखुड़ियाँ तोड़कर अथवा सूई आदि से बाँधकर बनी हुई माला
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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