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________________ 146... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... दिनों चन्द्रमा की वजह से समुद्र में ज्वार भाटा आता है, पानी का वेग बढ़ता है। इसका दुष्प्रभाव शरीर पर भी पड़ता है। फल आदि के सेवन से पानी की मात्रा में वृद्धि होने की पूर्ण संभावना रहती है। इन कारणों से हरी वनस्पति का निषेध हैं। जबकि परमात्मा को फल आदि चढ़ाते हुए जीव हिंसा की भावना नहीं रहती अपितु उनके प्रति त्याग एवं अनासक्ति भाव का वर्धन होता है। इसी के साथ उस जीव को पूर्ण रूप से अभयदान भी मिल जाता है। इसी कारण अष्टमी-चौदस आदि पर्व तिथियों के दिन श्रावक को स्वयं के लिए हरीवनस्पति आदि का त्याग करना चाहिए किन्तु परमात्म चरणों में वह अर्पित कर सकता है। यदि श्रावक सम्पूर्ण द्रव्य का त्याग करके श्रावक ही ले ले तो फिर उसे मन्दिर में भी किसी प्रकार का द्रव्य नहीं चढ़ाना चाहिए। फलपूजा सम्बन्धी जन धारणा • परमात्मा को फल अर्पित करने से मन वांछित फल की प्राप्ति होती है। • भोमियाजी आदि अधिष्ठायक देवों को श्रीफल आदि चढ़ाने से वे शीघ्र मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं। • श्रीफल को मंगल का सूचक माना गया है एवं उसे चढ़ाने से जीवन में कल्याण की प्राप्ति होती है। • चढ़ाया हुआ श्रीफल यदि फट जाए तो अशुभ का संकेत मानते हैं। फलपूजा का माहात्म्य एवं लाभ • सुन्दर, मधुर एवं पूर्ण पका हुआ फल जिस प्रकार मन को आनन्दित एवं तन को स्फूर्तिमय बनाता है। उसी तरह फलपूजा आत्मानंद की अनुभूति करवाती है। • रोगी व्यक्ति को मिलने जाते समय कई स्थानों पर मंगलकामना के रूप में फूल के समान फल भी दिए जाते हैं। वैसे ही परमात्मा के सम्मुख फल ले जाकर आत्म स्वस्थता को प्राप्त किया जा सकता है। • फल पूजा करने से अनिष्ट कर्मों के फल नष्ट हो जाते हैं। • जिस प्रकार फल में मधुरता, पूर्णता आदि के गुण व्याप्त हैं, फलपूजा के द्वारा इन्हीं गुणों को प्राप्त करने की प्रेरणा मिलती है। • फलपूजा कर्म बंधन को क्षीण कर मोक्ष फल प्राप्त करने एवं आत्मा के शुद्ध परमात्म स्वरूप का प्रतीक है।
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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