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________________ 138... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... यथार्थतः जो लोग द्रव्यपूजा के सही तात्पर्य को नहीं समझते वे ही ऐसे तर्क करते हैं। द्रव्यपूजा तो आसक्ति एवं परिग्रह वृत्ति को न्यून करने की अपेक्षा से की जाती हैं। परमात्मा को द्रव्य की Quality से कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि वे तो वीतरागी हैं परन्तु उत्तम कोटि का द्रव्य होने पर उत्तम भावों के निर्माण में सहयोग मिलता है अतः जिनपूजा में उत्कृष्ट द्रव्य का उपयोग करना चाहिए। यदि चैत्यवंदन विधि करते हुए पुजारी आदि साथिया हटा दे तो कई लोग क्रिया को अपूर्ण या अविधि मानते हैं। कुछ लोग तो झगड़ा भी शुरू कर देते है परन्तु यथार्थतः एक बार द्रव्यपूजा का त्याग कर भावपूजा में प्रवेश करने के बाद द्रव्य विषयक चिंतन करना मूर्खता है । • • कुछ लोग दो स्वस्तिक बनाकर दांपत्य जीवन के सुखद निर्वाह एवं भविष्य के साथ की कामना करते हैं। जबकि मन्दिर में संसार समाप्ति की कामना करनी चाहिए, संसार वृद्धि की नहीं । • किसी भी तप आदि की क्रिया करते हुए जब तक क्रिया पूर्ण न हो तब तक स्वस्तिक आदि मिटाने नहीं चाहिए ऐसी मान्यता प्रायः लोगों में देखी जाती है । परन्तु ऐसे किसी भी विधान का सूचन ग्रन्थों में प्राप्त नहीं होता । यह मान्यता प्राय: इस कारण हो सकती है कि द्रव्य सामने होने पर भावों में अधिक उल्लास भाव जागृत होते हैं किन्तु इसका आग्रह रखना या इस हेतु स्वयं के परिणाम बिगाड़ना सर्वथा अनुचित है। • देवी-देवताओं के आगे त्रिशूल आदि बनाए जाते हैं। जैन मन्दिरों में शस्त्र निर्माण उचित प्रतीत नहीं होता अतः उनके समक्ष भी स्वस्तिक आदि ही बनाना चाहिए। • दादा गुरुदेव के सम्मुख स्वस्तिक एवं रत्नत्रयी रूप तीन ढेरियाँ बनाई जाती हैं। उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. के अनुसार गुरु के समक्ष मोक्षेच्छा की अभिव्यक्ति करते हुए सिद्धशिला भी बना सकते हैं। कहीं-कहीं पर सिद्धशिला के स्थान पर ध्वजा बनाने का विधान भी देखा जाता है। अक्षत पूजा का वैशिष्ट्य एवं फायदे • अष्टप्रकारी पूजा न करने वाले श्रावकों के लिए भी अक्षत पूजा करने का आवश्यक विधान है। एकमात्र अक्षत पूजा से भी जिनपूजा का लाभ प्राप्त होता है।
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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