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________________ अष्ट प्रकारी पूजा का बहुपक्षीय अनुशीलन ...127 करता है क्योंकि उनके रहते कार्य की सिद्धि संभव ही नहीं होती। अष्ट प्रकारी पूजाओं में उपरोक्त तीनों पूजाओं के द्वारा जीवन को निर्विघ्न बनाया जाता है। तत्पश्चात अग्र पूजा के द्वारा ऋद्धि-सिद्धि एवं समृद्धि की प्राप्ति होती है। अंगपूजा करते हुए परमात्मा के साथ शारीरिक सम्बन्ध जड़ा रहता है अर्थात जिनबिम्ब को स्पर्श करके ये पूजाएँ की जाती हैं अत: इनका स्थान गर्भगृह माना गया है। ___ अग्र पूजा के दौरान परमात्मा से द्रव्य अर्पण का सम्बन्ध बनाया जाता है अत: यह पूजा गर्भगृह के बाहर सम्पन्न की जाती है। अग्रपूजा के द्वारा इस भव में सुख-समृद्धि की एवं भवान्तर में देवलोक आदि के सुख की प्राप्ति होती है। अत: अग्रपूजा को अभ्युदयकारिणी पूजा भी कहा गया है। अष्टप्रकारी पूजा के बाद स्तुति, स्तवन, चैत्यवंदन रूप भावपूजा की जाती है। इनके माध्यम से परमात्मा से भावनात्मक सम्बन्ध जुड़ जाता है। यह पूजा समस्त दुखों का विनाश करके अप्रतिपाति मोक्ष सुख की उपलब्धि करवाती है। धूप पूजा का मौलिक स्वरूप ___ परमात्मा के समक्ष शुद्ध एवं सुगन्धित धूप जलाकर आत्मा से मिथ्यात्व रूपी दुर्गन्ध को दूर करने की भावना करना धूप पूजा है। अष्टप्रकारी पूजा में इसका चौथा स्थान एवं अग्र पूजा में यह प्रथम पूजा है। धूप पूजा का कारण बताते हुए शास्त्रकार भगवंत कहते हैं कि जिस प्रकार धूप दुर्गन्ध को दूर कर सुगन्ध को प्रसरित करता है। उसी तरह हमारी आत्मा भी कर्म एवं मिथ्यात्व रूपी दुर्गन्ध से दूर होकर सम्यग्दर्शन से सुवासित बने। धूप स्वभाव से ऊर्ध्वगामी होता है और हमारी आत्मा भी स्वभावत: ऊर्ध्वगामी है। अत: धूप पूजा के माध्यम से आत्मा को स्व-स्वरूप का आभास होता है तथा जीव सिद्ध स्वरूप को प्राप्त करता है। ___धूप पूजा के द्वारा मन्दिर का वातावरण पवित्र, सुगन्धित एवं निर्मल बनता है, जिससे परमात्म भक्ति में साधक का मनोयोग अधिक प्रबलता से जुड़ता है। धूप पूजा करने हेतु प्राकृतिक एवं सुगन्धित द्रव्यों से निर्मित दशांगधूप या चूर्ण वाले धूप का प्रयोग करना चाहिए। पूर्वाचार्यों के अनुसार चंदन, देवदारू, मृगमद, गंधवटी, घनसार, कृष्णागार आदि अनेक सुगन्धित द्रव्यों को मिलाकर
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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