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________________ 112... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... समाधान- मेरु पर्वत पर परमात्मा का जन्माभिषेक करते समय शकेन्द्र वृषभ (बैल) का रूप धारण करके अपने अंगों (सिंग) द्वारा परमात्मा का न्हवण करते हैं। इसी का वर्णन इस पंक्ति में किया गया है। किन्तु प्रश्न होता है कि इन्द्र बैल का रूप क्यों धारण करते हैं? शास्त्रकारों के अनुसार यह क्रिया इन्द्र के मन में रही प्रभु भक्ति एवं परमात्मा को सर्वोत्कृष्ट मानने का सूचक है। प्रभु भक्ति में भाव-विभोर हुआ इन्द्र परमात्मा को सर्वोत्कृष्ट एवं अपने आपको निम्न स्तर का मानता है। तीर्थंकरों के ज्ञान वैभव के सामने वे स्वयं को बैल के समान समझते हैं। व्यवहार जगत में बैल को अल्पबुद्धि या जड़बुद्धि वाला माना जाता है और ऐसी बुद्धि वाले व्यक्ति को बैल बुद्धि वाला कहा जाता है। इन्द्र जो कि 32 लाख देवों के अधिपति और तीन ज्ञान के धारक हैं वे भी परमात्मा के सामने अपने आपको बैल तुल्य मानकर अपनी लघुता अभिव्यक्त करते हैं। इन्हीं भावों की अभिव्यक्ति करने हेतु वे वृषभ रूप धारण करते हैं। शंका- प्रक्षाल क्रिया में वालाकुंची और अंगलुंछन वस्त्रों का प्रयोग क्यों और कब से? समाधान- वालाकुंची या खसकुंची एक शास्त्रोक्त उपकरण है। प्रतिमाजी पर चिपके हुए केशर एवं चिकनाहट को दूर करने के लिए खसकुंची का प्रयोग किया जाता है। प्रतिमाजी पर केशर या चिकनाहट रह जाए तो मूर्ति में श्यामता या निष्प्रभता आ जाती है। कई बार उसके कारण सूक्ष्म जीवों की उत्पत्ति भी हो जाती है। अत: सूक्ष्म स्थानों में रहे केशर आदि को निकालने के लिए वालाकुंची का प्रयोग आवश्यक है। परन्तु जहाँ शास्त्रकारों ने इसके प्रयोग को जरूरी माना है वहीं इस विषय में अत्यंत सावधानी रखने का भी निर्देश दिया है। जितनी जागरूकता एवं कोमलता पूर्वक पैर का काँटा या आँख का कचरा निकाला जाता है उससे भी अधिक विवेक एवं सावधानी वालाकुंची के प्रयोग में रखनी चाहिए। वालाकुंची का प्रयोग करने से पूर्व उसे दस मिनट तक पानी में भिगाकर फिर उपयोग में लेना चाहिए। ___ मेहनत एवं समय बचाने के लिए वालाकुंची का प्रयोग अनुपयुक्त है। आजकल बढ़ते उपयोग के कारण धातु की प्रतिमाओं के अंग-उपांग बहुत जल्दी घिस जाते हैं। इस विषय में श्रावक वर्ग का जागरूक होना अत्यंत आवश्यक है।
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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