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________________ 102... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... ___ अर्थ- जगत दिवाकर तीर्थंकर परमात्मा के सामने द्रव्य दीप प्रगट करने से समस्त दुखों का नाश होता है तथा भावदीप रूप केवलज्ञान के प्रकट होने से सम्पूर्ण लोकालोक प्रकाशित होता है। ___ॐ ह्रीं श्रीं परम पुरुषाय परमेश्वराय जन्म जरा मृत्यु निवारणाय श्रीमते जिनेन्द्राय दीपं यजामहे स्वाहा। ___ अक्षत पूजा- अरिहंत परमात्मा के सम्मुख पूजा के रूप में अक्षत पूजा की जाती है। अक्षय स्थिति की कामना करते हुए चतुर्दल मुद्रा एवं शिखर मुद्रा में अक्षत चढ़ाएं। श्लोक- सकल मंगल केलि निकेतनं, परम मंगल भाव मयं जिनम् । श्रयति भव्य जना इति दर्शयन्, दधतुनाथ पुरोक्षत स्वस्तिकं ।। अर्थ- श्री जिनेश्वर प्रभु समस्त मंगल एवं श्रेयस् के क्रीड़ा स्थान हैं, परम मंगल भावना के धाम हैं, इन्हीं उत्तम भावों को व्यक्त करने हेतु मंगलकारी अखंड चावलों से परमात्मा के समक्ष स्वस्तिक बनाया जाता है। दोहा- शुद्ध अखंड अक्षत ग्रही, नंद्यावर्त्त विशाल । - पूरो प्रभु सन्मुख रही, टाली सकल जंजाल ।। __ अर्थ- शुद्ध और अखंड चावलों के द्वारा परमात्मा के समक्ष नद्यावर्त्त बनाने से संसार के समस्त दुःख और जंजाल समाप्त हो जाते हैं। मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं परम पुरुषाय परमेश्वराय जन्म जरा मृत्यु निवारणाय श्रीमते जिनेन्द्राय अक्षतं यजामहे स्वाहा। स्वस्तिक, सिद्धशिला आदि बनाते हुए निम्न दोहे बोले जाते हैंदोहे- दर्शन-ज्ञान-चारित्रनां, आराधन थी सार । सिद्धशिलाने ऊपरे, हो मुझ वास श्रीकार ।। अक्षत पूजा करतां थकां, सफल करूं अवतार । फल मांगु प्रभु आगले, तार तार मुझ तार ।। सांसारिक फल मांगिने, रखडियो बहु संसार । अष्ट कर्म निवारवा, मांगुं मोक्ष फल सार ।। चिहुंगति भ्रमण संसारमां, जन्म-मरण जंजाल । पंचम गति विण जीव ने, सुख नहीं त्रिहुं काल ।। अर्थ- दर्शन-ज्ञान-चारित्र रूप रत्नत्रय की साधना से मेरा सिद्ध शिला पर
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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