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________________ अष्ट प्रकारी पूजा का बहुपक्षीय अनुशीलन ...93 आदि द्रव्यों को मिलाकर बनाया जाता है। जैसा कि इसके नाम से भी स्पष्ट होता है कि यह पूजा चूर्ण बरसाकर की जाती है। वर्तमान में प्रभु के नव अंगों पर वासक्षेप द्वारा जो पूजा की जाती है वह अर्थसंगत प्रतीत नहीं होती । वासक्षेप पूजा का मूल हार्द आहार आदि संज्ञाओं, क्रोधादि कषायों एवं जीव की विभाव अवस्था को दूर करते हुए आत्मा को सद्गुणों से सुवासित करना है। जलपूजा- इसे जलपूजा, प्रक्षाल पूजा एवं अभिषेक पूजा के नाम से भी जाना जाता है। यद्यपि इस पूजा में दूध आदि पंचामृत से प्रक्षाल किया जाता है। किन्तु यह जलपूजा के नाम से ही रूढ़ है। जलपूजा करने हेतु परमात्मा के जन्म कल्याणक की कल्पना करते हुए पानी का कलश लेकर जिन प्रतिमा के सम्मुख खड़े रहें और चिंतन करें - हे परमात्मन्! मैं अपने अनादि संचित कर्म मल को दूर करने के लिए यह जलकलश लेकर उपस्थित हुआ हूँ, ऐसी भावना करते हुए निम्न श्लोक एवं दोहे का स्मरण करें। श्लोक - विमल केवल भासन भास्करं, जगति जंतु महोदय कारणम् । जिनवरं बहुमान जलौघतः, शुचिमनः स्नापयामि विशुद्धये ।। अर्थ- जो निर्मल केवलज्ञानरूपी सूर्य से प्रकाशित है, संसारी प्राणियों के लिए विकास का परम आधार है, ऐसे जिनेश्वर परमात्मा की पूर्ण भक्ति सहित विशुद्ध मन से जलपूजा करता हूँ। दोहा - जलपूजा जुगते करो, मेल अनादि विनाश । जलपूजा फल मुज हजो, मांगु एम प्रभु पास ।। अर्थ- द्रव्य और भाव युक्त जलपूजा करने से अनादिकालीन कर्म मल का विनाश होता है। ऐसा ही फल मुझे भी प्राप्त हो, यही मांगणी मैं आपसे करता हूँ। मंत्र - ॐ ह्रीं श्रीं परम पुरुषाय परमेश्वराय जन्म जरा मृत्यु निवारणाय श्री मते जिनेन्द्राय जलं यजामहे स्वाहा । यह बोलकर पंचामृत या दूध से प्रक्षाल करें। प्रक्षाल के समय साक्षात जन्मोत्सव के वर्णनयुक्त निम्न पद्य बोलें मेरु शिखर न्हवरावे हो सुरपति, मेरुशिखर न्हवरावे जन्मकाल जिनवरजी को जाणी, पंचरूप करी आवे, हो सुरपति । ।
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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