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________________ 78... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... चाहिए। परमात्मा के अंगलुंछण वस्त्र का प्रयोग इनके लिए अथवा इनके लिए प्रयुक्त अंगलंछण वस्त्र का प्रयोग परमात्मा के लिए नहीं करना चाहिए। • अंगलुंछण करने के बाद अंगलुंछण वस्त्रों को वापस एक थाली में रखना चाहिए। दरवाजा, खिड़की, पबासन आदि पर अंगलुंछण वस्त्र नहीं रखने चाहिए। • अंगलुंछण दोनों हाथों से करना चाहिए। एक हाथ से प्रभु की प्रतिमा, दीवार या परिकर का टेका लेकर अंगलुंछण नहीं करना चाहिए। • अंगलुंछण, पाटलुंछण एवं जमीनलुंछण इन तीनों की डोरी अलगअलग होनी चाहिए। • अंगलंछण का कार्य पूर्ण होते ही वस्त्रों को तुरंत धोकर सुखाना चाहिए। • अंगलुंछण धोने हेतु परात या थाली का प्रयोग करना चाहिए और यदि संभव हो तो उस पानी को नाली आदि में भी नहीं डालना चाहिए। • अंगलंछण आदि क्रियाएँ एकदम मौनपूर्वक करनी चाहिए। • अंगलुंछण वस्त्रों को पाटलुंछण वस्त्र के साथ रखना, धोना या सुखाना नहीं चाहिए। विलेपन करने की विधि __• देसी कपूर और चंदन को मिश्रित करके जिनपूजा हेतु सुगंधित विपेलन तैयार करना चाहिए। • विलेपन को छोटी थाली में ग्रहण कर एवं धूप से संस्कारित करके फिर मूल गंभारे में लेकर जाना चाहिए। • विलेपन नाखून में रह न जाए यह सावधानी रखते हुए पाँचों अंगुलियों से परमात्मा के सर्व अंग पर विलेपन करना चाहिए। मुख पर विलेपन नहीं करना चाहिए। • जब एक व्यक्ति विलेपन कर रहा हो तो बाकी लोगों को हाथ जोड़कर पंक्ति में खड़ा रहना चाहिए। विलेपन पूजा सम्पन्न होने के बाद अंगलुंछण वस्त्र के समान किसी मलमल आदि के वस्त्र से विलेपण को पोंछने के भी उल्लेख प्राप्त होते हैं। • कई आचार्यों के अनुसार यदि परमात्मा की बरख आदि से अंगरचना करनी हो तो ही विलेपन पूजा करनी चाहिए। विलेपन पूजा का मुख्य हेतु अंगरचना बताया गया है।
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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