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________________ जिनपूजा - एक क्रमिक एवं वैज्ञानिक अनुष्ठान स्थान ... 75 मूल गर्भगृह में प्रवेश करने की विधि • मूल गर्भगृह में प्रवेश करने से पूर्व मन्दिर सम्बन्धी कार्यों का भी त्याग करने के सूचनार्थ दूसरी निसीहि बोलनी चाहिए। • विनय भाव का प्रदर्शन करने हेतु अर्धावनत प्रणाम करते हुए अंगपूजा सम्बन्धी सामग्री को हाथ में लेकर फिर गंभारे में प्रवेश करना चाहिए। • गंभारे में प्रवेश करने के बाद किसी भी तरह की बातें नहीं करनी चाहिए। · गंभारे में किसी भी स्तुति स्तोत्र आदि का पाठ नहीं करना चाहिए। यथासंभव मौनपूर्वक पूजा करनी चाहिए । • गर्भगृह के मूल द्वार की देहलीज के दायीं - बायीं तरफ बने केशरी हुए सिंह और व्याघ्र दोनों क्रमशः राग और द्वेष के प्रतीक हैं। गंभारे में प्रवेश करने से पूर्व राग और द्वेष दोनों का ही दमन करना चाहिए, ऐसा इन चिह्नों से संदेश मिलता है। • गर्भगृह में अंगपूजा, निर्माल्य उत्तारण, अंगलुंछन आदि हेतुओं से ही प्रवेश करना चाहिए। अकारण गर्भगृह में नहीं जाना चाहिए। • पूजा के वस्त्र पहनकर एवं मुखकोश बांधकर ही गर्भगृह में प्रवेश करना चाहिए। निर्माल्य उतारने की विधि • निर्माल्य उतारने हेतु सर्वप्रथम एक स्वच्छ थाल में प्रतिमाजी पर रहे हुए पुष्प आदि अत्यंत कोमलतापूर्वक उतारने चाहिए। • बासी फूलों को यथायोग्य स्थान पर रखकर यदि मुकुट, आंगी, अलंकार आदि चढ़ाए हुए हों तो उन्हें भी अत्यंत धीरतापूर्वक एक-एक करके उतारना चाहिए। इन्हें उतारकर फर्श आदि पर नहीं रखते हुए किसी थाली में रखना चाहिए। बहुमानपूर्वक क्रिया करना भी परमात्मा के प्रति एक प्रकार का विनय है। • तदनन्तर मोरपींछी के द्वारा जिनबिम्ब पर रहे हुए शेष निर्माल्य, वासक्षेप आदि उतारनी चाहिए। • उसके पश्चात एक स्वच्छ कटोरे में पानी लेकर उससे प्रतिमाजी को
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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