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________________ जिनपूजा - एक क्रमिक एवं वैज्ञानिक अनुष्ठान स्थान ...67 3. प्रार्थना प्रणिधान- जय वीयराय सूत्र के द्वारा परमात्मा के चरणों में भव निर्वेद आदि की प्रार्थना करना प्रार्थना प्रणिधान है। प्रणिधान त्रिक में रखने योग्य सावधानियाँ निम्नोक्त हैं • प्रणिधान त्रिक का पालन मन, वचन, काया की स्थिरता एवं एकाकारता के लिए किया जाता है। अत: चैत्यवंदन करते समय मानसिक एवं शारीरिक चंचलता का निरोध करना चाहिए। • जिस समय जो कार्य कर रहे हो उस समय मात्र उसी में ध्यान रखना चाहिए। अन्य किसी भी बात का चिंतन नहीं करना चाहिए। • प्रणिधान सूत्रों का उच्चारण एवं मनन करते हुए उन भावों से गुम्फित होने का प्रयास करना चाहिए। • प्रणिधान समस्त आराधनाओं का मुख्य आधार है। इसके बिना कोई भी आराधना सफल नहीं हो सकती। अत: इसमें पूर्ण तल्लीनता रखनी चाहिए। दस त्रिक, यह एक ऐसा Practical प्रयोग है जिसके द्वारा क्रमश: Step by Step परमात्मा से सम्बन्ध मजबूत बनता है। जिस प्रकार विविध प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद स्वर्ण एकदम शुद्ध बन जाता है वैसे ही विविध क्रियाओं को करते-करते भक्त एवं भगवान के बीच रहा सम्बन्ध भी स्वार्थ एवं सांसारिक कामनाओं से ऊपर उठकर विशुद्ध एवं स्थायी बन जाता है। अत: प्रत्येक श्रावक को इन दस त्रिक का पालन पूर्ण जागृति एवं मनोयोग पूर्वक करना चाहिए जिससे वह भक्ति योग की मस्ती में अलमस्त बन जाए। जिनपूजा सम्बन्धी विधियों का संक्षिप्त परिचय ___ जैन शास्त्रकारों ने श्रावक के कर्तव्यों का निरूपण करते हुए जिनपूजा को एक आवश्यक कर्त्तव्य माना है। इस कर्तव्य का यथोचित पालन करने हेतु तत्सम्बन्धी मर्यादाओं एवं विधि मार्ग का निर्देशन भी हमें विविध आचार ग्रन्थों में प्राप्त होता है। इन नियमों का पालन करता हुआ श्रावक शुद्ध रूप से जिनपूजा का अनुष्ठान पूर्ण कर मानसिक शांति, आत्मिक प्रसन्नता एवं शारीरिक स्फूर्ति का भी अनुभव कर सकता है। उन समस्त विधियों का एक संक्षिप्त क्रम एवं विधि शास्त्रानुसार इस प्रकार है। स्नान करने की विधि • स्नान करने की विधि का उल्लेख करते हुए जैनाचार्य कहते हैं कि स्नान
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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