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________________ 64... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... जाना चाहिए। यदि किसी कारणवश उत्तरासंग धारण न किया हो तो दृष्टि से भूमि का पडिलेहन अवश्य करना चाहिए। • यदि फर्श पर जीव-जन्तु न भी दिख रहे हों तो भी प्रमार्जन करना जरूरी है। 8. आलंबन त्रिक __आलंबन का अर्थ है आधार। चैत्यवंदन करते समय मन-वचन-काया की स्थिरता हेतु उन्हें प्रशस्त भावों से जोड़ना तथा उनकी दुष्प्रवृत्तियों को रोकने हेत तीनों को भिन्न-भिन्न तीन आलंबनों से जोड़ना आलंबन त्रिक कहलाता है। वे तीन आलंबन निम्न हैं- 1. सूत्रार्थ 2. सूत्रोच्चारण एवं 3. विविध मुद्रा या जिनबिम्ब।15 सूत्र बोलते समय मन में उसके अर्थ का भी चिन्तन-मनन करना जिससे मन नियंत्रित रहे। सूत्रों का मात्र तोता रटन नहीं करना। वचन को नियंत्रित रखने हेतु सूत्रों के शुद्ध उच्चारण का आलम्बन लेना। इसी के साथ पद, संपदा, स्वर, व्यंजन आदि का पूर्ण ध्यान रखना। काया की स्थिरता हेतु सूत्रों के साथ करने योग्य मुद्राओं के आचरण का आलंबन लेना। इस प्रकार तीनों योगों को विभिन्न आलम्बनों में स्थिर करके भक्ति योग में तदाकार बनना आलंबन त्रिक है। ये तीनों आलम्बन त्रियोग को स्थिर करने के श्रेष्ठ उपाय हैं। सूत्रों में रही हुई शब्द एवं मंत्र शक्ति, राग-द्वेषरूपी जहर को उतारने का सामर्थ्य रखती है। परन्तु इनका अनुभव तब ही हो सकता है जब कोई इन तीनों आलंबनों को त्रियोग की स्थिरता पूर्वक धारण करे। आलंबन त्रिक का पालन करते हुए निम्न मर्यादाओं का पालन आवश्यक है • चैत्यवंदन रूप भावपूजा करते हुए सूत्रों के शुद्ध उच्चारण पर पूरा ध्यान देना चाहिए। उनकी पद, सम्पदा आदि को विस्मृत कर सुपरफास्ट ट्रेन की तरह नहीं दौड़ना चाहिए। ___ • जिस सूत्र के साथ जो मुद्रा बताई गई है उसे उसी मुद्रा में बोलना चाहिए। बैठे-बैठे इरियावहियं करना अथवा चैत्यवंदन करते हुए उचित मुद्रा को धारण नहीं करना अविधि है। • सूत्रार्थ एवं सूत्रोच्चारण गुरुगम पूर्वक अवश्य सीखना चाहिए।
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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