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________________ 46... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... 4. भूमि शुद्धि - जिनमन्दिर के अन्दर-बाहर एवं आस-पास की भूमि की पवित्रता और शुद्धता का ध्यान रखना भूमिशुद्धि है। सभी धर्मों में भूमि का अचिन्त्य प्रभाव माना गया है। अशुद्ध भूमि अशुद्ध विचारों एवं भावों में हेतुभूत बनती है, वहीं शुद्ध एवं पवित्र भूमि शुभ भावों में निमित्त बनती है। जिनमन्दिर जाने वालों को जिनालय सम्बन्धी भूमि की शुद्धता के विषय में निम्न पहलुओं का ध्यान अवश्य रखना चाहिए • मन्दिर की साफ-सफाई का पूर्ण निरीक्षण करना चाहिए। कहीं जाले लगे हुए न हो, कचरा आदि कहीं इकट्ठा न हो रहा हो इसका पूर्ण अवलोकन करना चाहिए। • मूल गंभारा, पबासन, श्रृंगार चौकी, केसर घिसने का स्थान आदि को सूक्ष्मता से देखना चाहिए तथा कोई सूक्ष्म जीव दृष्टिगत हो जाए तो पूंजनी आदि से जयणापूर्वक उसे दूर करना चाहिए। • मन्दिर परिसर में नाक का मल, श्लेष्म, थूक, शरीर का मैल आदि नहीं डालना चाहिए। • गोबर, मल-मूत्र, जीवों के मृत कलेवर आदि कहीं भी दिख जाए तो उसे तुरंत साफ करवाना चाहिए । • पशु-पक्षिओं को उस क्षेत्र में बंधन युक्त नहीं रखना चाहिए क्योंकि उनके आक्रंदन आदि से वातावरण करुण एवं रौद्र बन जाता है। • परमात्मा का निर्माल्य द्रव्य निर्जीव भूमि पर रखना चाहिए । • प्रात:काल में मन्दिर खोलने के पश्चात सर्वप्रथम कोमल बुहारी के द्वारा भूमि शुद्धि करनी चाहिए। • जिनमन्दिर निर्माण से पूर्व भी भूमि की शुद्धता एवं उसे शल्य रहित करने का पूर्ण ध्यान रखना चाहिए । अतः यह स्पष्ट है कि भूमिशुद्धि का जिनपूजा में महत्त्वपूर्ण स्थान है क्योंकि भूमि शुद्ध होने पर ही आराधकों का मन आराधना में जुड़ता है और भूमि की अपवित्रता मन में कलह-क्लेश आदि का वातावरण निर्मित करती है। 5. उपकरण शुद्धि- प्रभु पूजन में उपयोगी उपकरणों की शुद्धता एवं गुणवत्ता का ध्यान रखते हुए श्रेष्ठ उपकरण एवं सामग्री का प्रयोग करना उपकरण शुद्धि है। जिनपूजा में उपयोगी कलश, कटोरी, थाली, केसर, चंदन,
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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