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________________ जिनपूजा - एक क्रमिक एवं वैज्ञानिक अनुष्ठान स्थान ...39 कोमलतापूर्वक शुद्ध मुलायम वस्त्र से धीरे-धीरे तीन बार प्रतिमाजी का अंगुलंछन करें। पबासन को सुखाने के लिए अलग से नेपकिन का प्रयोग करें। • प्रतिमाजी को अच्छी तरह से पौंछ लेने के बाद पबासन एवं जमीन को सुखा दें ताकि उस पर किसी का पैर नहीं आए। • प्रक्षाल क्रिया सम्पन्न होने के बाद दोहे बोलते हए अनामिका अंगली (ring finger) से प्रभु के नव अंगों की चंदन से पूजा करें। यदि आंगी करनी हो तो बरास, इत्र आदि लगाएँ। • पूजा करते हुए परमात्मा के नव अंगों की विशेषता एवं रहस्यों का ध्यान करें। • फिर अरिहंत परमात्मा के अतिशयों का चिंतन करते हुए अर्धखुली अंजली मुद्रा में पुष्पों को ग्रहण कर उन्हें मंत्रपूर्वक परमात्मा पर चढ़ाएँ। • पूजा करते समय पहले मूलनायक परमात्मा की पूजा करें उसके बाद क्रमशः अन्य जिन प्रतिमाओं की पूजा करें। फिर सिद्धचक्रजी गट्टा, बीशस्थानक यंत्र, गुरुमूर्ति, देवमूर्ति आदि की पूजा करें। • अंगपूजा सम्पन्न करने के बाद मुखकोश खोल दें तथा गर्भगृह के बाहर आकर अग्रपूजा करें। ___ • यहाँ अग्रपूजा के अन्तर्गत दोहा बोलते हुए क्रमश: धूप एवं दीपक पूजा करें। • फिर अक्षत पूजा हेतु शुद्ध, अखंड एवं उत्तम किस्म के चावलों से चौकी पर ढेरी बनाएं तथा तर्जनी अंगुली से स्वस्तिक, सिद्धशिला आदि बनाएँ। • फिर संपुट मुद्रा में नैवेद्य (मिठाई) धारण कर उसे स्वस्तिक पर चढ़ाएँ। • फिर समर्पण मुद्रा में फल को ग्रहण हुए मोक्ष प्राप्ति की भावना से सिद्धशिला पर चढ़ाएँ। • इस तरह अष्टप्रकारी पूजा सम्पन्न कर नृत्य पूजा के रूप में चामर पूजा करें। • परमात्मा को हृदय में स्थापित करने के भावों से दर्पण पूजा करें। • आत्मकल्याण के भावों से आरती एवं मंगलदीपक करें। • द्रव्यपूजा पूर्ण होने के बाद इरियावहियं पूर्वक जाने-अनजाने में लगे हुए दोषों का प्रायश्चित्त करें।
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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