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________________ प्रतिक्रमण की मौलिक विधियाँ एवं तुलनात्मक समीक्षा ... 121 उक्त विधि से ज्ञात होता है कि इस आम्नाय में गृहस्थ के लिए वंदित्तु सूत्र एवं लघुशांति पाठ बोलना आवश्यक नहीं है। इनमें श्रुतदेवता एवं क्षेत्रदेवता का कायोत्सर्ग भी नहीं करते हैं तथा परसमय तिमिर या संसारदावा की स्तुति भी नहीं बोलते हैं। पायच्छंदगच्छ— इस परम्परागत दैवसिक प्रतिक्रमण की विधि निम्न है - 1. सर्वप्रथम 'श्री पार्श्वनाथो भवपापताप' 6 गाथा का चैत्यवन्दन, फिर ‘अन्नाणकोह' का पाठ, फिर खड़े होकर 'सिरिरिसहेसर' की 5 गाथा रूप स्तुति बोलते हैं। 2. फिर देववन्दन के रूप में जं किंचि सूत्र एवं नमुत्थुणं सूत्र कहते हैं। 3. फिर आचार्य, उपाध्याय एवं सर्व साधू - इन तीन को वंदन कर प्रतिक्रमण स्थापना के रूप में एक नवकार बोलते हैं। 4. फिर पहले आवश्यक से छठे आवश्यक तक की विधि तपागच्छ परम्परा के अनुसार करते हैं। उनमें विशेष यह है कि वंदित्तुसूत्र के पूर्व चत्तारिमंगल., इच्छामिठामि और इच्छामि पडिक्कमिउं. का पाठ भी बोलते हैं और वंदित्तुसूत्र की 43 गाथा ही पढ़ते हैं। 5. 'नमोस्तु वर्धमानाय' के स्थान पर 'नमोदुर्वाररागादि' की स्तुति कहते हैं। 6. स्तवन के पश्चात जयवीयराय बोलते हैं और शांति पाठ नहीं बोलते हैं। शेष विधि तपागच्छ के समान है | 30 त्रिस्तुतिक गच्छ - इस आम्नाय में श्रुतदेवता एवं क्षेत्रदेवता का कायोत्सर्ग नहीं करते हैं तथा शान्ति पाठ भी नहीं बोलते हैं। शेष विधि प्रायः तपागच्छ के समान ही है। 31 पाक्षिक प्रतिक्रमण विधि आवश्यकनिर्युक्ति, पंचवस्तुक, योगशास्त्र, प्रवचनसारोद्धार, तिलकाचार्य सामाचारी, सुबोधा सामाचारी, विधिमार्गप्रपा, आचारदिनकर, साधुविधिप्रकाश आदि में वर्णित एवं वर्तमान परम्परा में प्रचलित पाक्षिक प्रतिक्रमण - विधि निम्न प्रकार है यहाँ ज्ञातव्य है कि पाक्षिक प्रतिक्रमण, छह आवश्यकों में चौथे प्रतिक्रमण आवश्यक के अन्तर्गत किया जाता है इसलिए यह प्रतिक्रमण चौथे आवश्यक के रूप में वंदित्तु सूत्र के बाद प्रारम्भ होता है।
SR No.006249
Book TitlePratikraman Ek Rahasyamai Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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