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________________ प्रत्याख्यान आवश्यक का शास्त्रीय अनुचिन्तन ...389 रूप से पालन करना चाहिए । प्रत्याख्यान का यथाविधि आचरण करने पर ही चारित्र गुण की पुष्टि, आस्रव का निरोध, तृष्णा का उच्छेद और अतुल उपशम गुण की प्राप्ति होती है। इसी तथ्य की पुष्टि उपरोक्त अध्याय में की गई है। सन्दर्भ-सूची 1. पइसद्दो पडिसेहे, अक्खाणं खावणाऽभिहाणं वा । पडिसेहस्स-क्खाणं, पच्चक्खाणं निवित्ती वा ॥ विशेषावश्यकभाष्य, 34-03 2. प्रत्याख्यायते निषिध्यतेऽनेन मनोवाक्कायक्रिया जालेन किञ्चिदनिष्टमिति आवश्यक हारिभद्रीय टीका, पृ. 208 वही, पृ. 208 प्रत्याख्यानम्। 3. प्रत्याख्यायतेऽस्मिन् सति वा प्रत्याख्यानम्। 4. (क) प्रति आख्यानं प्रत्याख्यानम्। (ख) प्रति प्रवृत्ति प्रतिकूलतया आ मर्यादया ख्यानं प्रकथनं प्रत्याख्यानम्। योगशास्त्र-स्वोपज्ञवृत्ति, प्रकाश - 3 5. अविरतिस्वरूपप्रभृति प्रतिकूलतया आ-मर्यादया आकारकरणस्वरूपया आख्यानं-कथनं प्रत्याख्यानम्। प्रवचनसारोद्धार, द्वार 4, पत्र 114 6. पडिकूलमविरईए, विरई भावस्स आभिमुक्खेणं । खाणं कहणं सम्मं, पच्चक्खाणं विणिदिट्टं ॥ प्रत्याख्यान स्वरूप, गा. 3 उद्धृत-प्रबोधटीका, भा. 3, पृ. 103 7. णमादीणं छण्णं, अजोग्ग परिवज्जणं तिकरणेण । पच्चक्खाणं णेयं, अणागयं चागमे काले ॥ मूलाचार, 1/27 की टीका तत्त्वार्थ राजवार्तिक, 6/24, पृ. 530 8. अनागत दोषापोहनं प्रत्याख्यानम् । 9. महव्वयाणं विणासण... पच्चक्खाणं णाम । धवलाटीका, 8/3,41/85/1 10. व्यवहारनयादेशात् मुनयो.... एतद्व्यवहार प्रत्याख्यानस्वरूपम् । नियमसार तात्त्विकवृत्ति, 95 11. कम्मं जं सुहमसुहं, जम्हि य भावम्हि बज्झदिभविस्सं । तत्तो णियत्तदे जो सो, पच्चक्खाणं हवदि चेदा ॥ 12. नियमसार, गा. 95, 97 समयसार, 384
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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