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________________ 338...षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में प्रबोध टीकाकार के अनुसार आयंबिल तप में पोरिसी या साढपोरिसी पर्यन्त सात आगार पूर्वक चारों आहारों का त्याग किया जाता है, इसलिए पहले पोरिसी-साढपोरिसी का पाठ बोलते हैं, उसके बाद आठ आगार पूर्वक आयंबिल का पाठ बोलते हैं। आयंबिल करने के पश्चात सूर्यास्त तक के लिए तिविहार का पच्चक्खाण कर लेना चाहिए। इससे पानी को छोड़कर शेष तीन आहारों का त्याग हो जाता है। वर्तमान प्रचलित आयंबिल प्रत्याख्यान का पाठ निम्न है उग्गए सूरे, पोरिसिं साढपोरिसिं चउव्विहंपि आहारं-असणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, पच्छन्नकालेणं, दिसामोहेणं, साहुवयणेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं। आयंबिलं पच्चक्खामि। अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, लेवालेवेणं, गिहत्थ-संसिटेणं, उक्खित्त-विवेगेणं, पारिट्ठावणियागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं। एगासणं पच्चक्खाइ-तिविहंपि आहारं-असणं खाइमं साइमं अन्नत्थाभोगेणं सहसागारेणं सागारियागारेणं आउंटणपसारेणं गुरु-अब्भुट्ठाणेणं पारिट्ठावणियागारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्तियागारेणं पाणस्स लेवेण वा, अलेवेण वा, अच्छेण वा, बहुलेवेण वा, ससित्थेण वा असित्थेण वा वोसिरामि।48 निर्विकृतिक प्रतिज्ञासूत्र उग्गए सूरे पोरिसिं साड्डपोरिसिं वा निविगइयं पच्चक्खामि, अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, लेवालेवेणं गिहत्थसंसिटेणं उक्खित्तविवेगेणं पडुच्चमक्खिएणं, पारिट्ठावणियागारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरामि। ___ अर्थ- सूर्योदय से लेकर दिन के प्रथम प्रहर या डेढ़ प्रहर तक मैं विकृतिकारक द्रव्यों का प्रत्याख्यान करता हूँ। इस प्रत्याख्यान में 1. अनाभोग 2. सहसाकार 3. लेपालेप 4. गृहस्थसंसृष्ट 5. उत्क्षिप्तविवेक 6. प्रतीत्यम्रक्षिक, 7. पारिष्ठापनिक 8. महत्तराकार और 9. सर्वसमाधिप्रत्ययाकार- इन नौ आगारों के सिवाय विकृति का त्याग करता हूँ।49
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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