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________________ 322...षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में (ii) देश उत्तरगुण प्रत्याख्यान- गृहस्थ के तीन गुणव्रतों एवं चार शिक्षाव्रतों के परिपालन की प्रतिज्ञा करना, देश उत्तरगुण प्रत्याख्यान है। आवश्यक भाष्य के अनुसार उत्तरगुण प्रत्याख्यान के निम्न दो प्रकार भी हैं (i) इत्वरिक- साधु के नियतकालिक अभिग्रह आदि तथा श्रावक के चार शिक्षाव्रत आदि इत्वरिक प्रत्याख्यान है। ___(ii) यावत्कथिक- साधु का नियंत्रित प्रत्याख्यान यावत्कथिक है, क्योंकि दुर्भिक्ष आदि में भी इस प्रत्याख्यान का पालन किया जाता है तथा श्रावक के तीन गुणव्रत यावत्कथिक प्रत्याख्यान है।18 ___षड्विध प्रत्याख्यान- अन्य आवश्यकों के समान निक्षेप दृष्टि से प्रत्याख्यान के भी नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव ये छह भेद हैं19___ 1. नाम प्रत्याख्यान- अयोग्य नाम पाप के हेतु हैं और विरोध के कारण हैं अत: उस नाम का उच्चारण मैं नहीं करूंगा, इस प्रकार का संकल्प करना अथवा किसी का प्रत्याख्यान नाम रख देना नाम प्रत्याख्यान है। 2. स्थापना प्रत्याख्यान- सरागी देवों की पूजा नहीं करूंगा अथवा जो मूर्तियाँ पाप-बन्ध की हेतु हैं और मिथ्यात्व आदि की प्रवर्तक हैं उनकी स्थापना नहीं करूंगा, ऐसा मानसिक संकल्प अथवा प्रत्याख्यान से परिणत हुए मुनि आदि का प्रतिबिम्ब, जो तदाकार हो या अतदाकार वह स्थापना प्रत्याख्यान है। 3. द्रव्य प्रत्याख्यान- अयोग्य आहार एवं दोषयुक्त उपकरणादि ग्रहण न करने का संकल्प करना अथवा प्रत्याख्यान शास्त्र का ज्ञाता और उसके उपयोग से रहित जीव द्रव्य प्रत्याख्यान है। ___4. क्षेत्र प्रत्याख्यान- अयोग्य, अनिष्ट, संक्लेश भावोत्पादक एवं संयम की हानि करने वाले क्षेत्र का परिहार करना अथवा प्रत्याख्यानधारी मुनि के द्वारा विचरण किए गए प्रदेश में प्रवेश करना क्षेत्र प्रत्याख्यान है। 5. काल प्रत्याख्यान- जिस काल में चारित्र आदि मूलगुणों एवं विविध कोटि के प्रत्याख्यान आदि उत्तरगुणों का नाश होता हो उस काल का अथवा उस काल में होने वाली क्रियाओं के त्याग का संकल्प करना अथवा प्रत्याख्यान धारी मुनि के द्वारा सेवित काल का स्मरण करना काल प्रत्याख्यान है। 6. भाव प्रत्याख्यान- मिथ्यात्व, असंयम, कषाय आदि अशुभ परिणाम का मन-वाणी एवं शरीर से परिहार करना अथवा भाव प्रत्याख्यान शास्त्र के
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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