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________________ 308... षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में 4. आगार– ‘अन्नत्थ ऊससिएणं- हुज्ज मे काउस्सग्गो' - लेना श्वासोश्वास आदि मेरा कायोत्सर्ग हो • यह सूत्र आवश्यकसूत्र के पंचम अध्ययन में तस्सउत्तरीसूत्र के साथ ही उल्लिखित है। उपसंहार कायोत्सर्ग भेद विज्ञान की साधना है। आत्मा भिन्न है और शरीर भिन्न हैइस प्रकार की समझ उत्पन्न होना भेदविज्ञान है। भेदज्ञान के लिए देह भाव (ममत्व भाव) का विच्छेद करना परमावश्यक है। जीव का सबसे घनिष्ठ सम्बन्ध देह (काया) से है। इन्द्रिय, मन, बुद्धि देह के ही अंग हैं। देह से भिन्न इनका स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं है । इसलिए देहान्त होते ही इनका भी अन्त हो जाता है। इन्द्रियाँ और मन जब अपने विषयों में प्रवृत्ति करते हैं तब इनका संसार से सम्बन्ध जुड़ता है। इस प्रकार शरीर का इन्द्रियों, वस्तुओं एवं संसार से सम्बन्ध स्थापित होता है। अतः शरीर, इन्द्रियाँ, मन और इनकी विषय वस्तुएँ, इन सबमें जातीय एकता है । ये सब एक ही जाति 'पुद्गल' के रूप में हैं। जो विनाशशील, अनित्य, अध्रुव और क्षणभंगुर है उसे पुद्गल कहते हैं। इस तरह शरीर और संसार के सभी पदार्थ विनाशी है, जबकि आत्मा अविनाशी स्वभाव वाली है, दो भिन्न द्रव्यों का सम्बन्ध कैसे हो सकता है ? हम संसारी प्राणी के देह और आत्मा में एकत्व देखते हैं वह कर्मजनित है। जब तक आत्मा के साथ कर्मपुद्गल रहे हुए हैं तब तक ही आत्मा शरीर, संसार एवं इन्द्रियों से बंधी रहती है कर्मरहित आत्म प्रदेशों के साथ नवीन कर्म आकर नहीं चिपकते हैं, जैसे सिद्ध आत्मा। आत्मा का यथार्थ स्वरूप कर्मरहितता है, वह देहरूप नहीं है। आत्मा का देह से सम्बन्ध होना ही समस्त बन्धनों का कारण है, क्योंकि देह का इन्द्रियों से, इन्द्रियों का विषयों से, विषयों का वस्तुओं से और वस्तुओं का संसार से सम्बन्ध स्थापित होता है। अतः प्राथमिक रूप से देहातीत की साधना करना ही आवश्यक है और वह कायोत्सर्ग के आलम्बन से ही सम्भव है। कायोत्सर्ग के द्वारा न केवल शारीरिक, ऐन्द्रिक या सांसारिक विषयों से सम्बन्ध विच्छेद होता है अपितु कर्तृत्व एवं भोक्तृत्व भाव का अन्त हो जाता है, जिससे कर्मबन्धन का प्रवाह रूक जाता है और कर्मोदय का प्रभाव बलहीन हो जाता है।
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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