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________________ कायोत्सर्ग आवश्यक का मनोवैज्ञानिक अनुसंधान ...265 फिर रीढ़ की हड्डी और गर्दन को सीधा करें, उसमें झुकाव और तनाव न हो। अंगोपांग शिथिल और सीधे सरल रहें। कायोत्सर्ग में सर्वप्रथम शिथिलीकरण की आवश्यकता है। शरीर के समग्र अवयवों को, मांसपेशियों को, कोशिकाओं को शिथिल बनाने के लिए दीर्घ श्वास लें। बिना कष्ट के जितना लम्बा श्वास ले सके उतना लम्बा करने का प्रयास करें। इससे शरीर और मन- इन दोनों के शिथिलीकरण में बहुत सहयोग मिलता है। आठ-दस बार दीर्घ श्वास लेने के पश्चात वह क्रम सहज हो जाता है। स्थिर बैठने से भी कुछ-कुछ शिथिलीकरण स्वयमेव हो सकता है और उसके पश्चात जिस अंग को शिथिल करना हो, उसमें मन को केन्द्रित करें। जैसे सर्वप्रथम गर्दन, कन्धा, सीना, उदर, दाएं-बाएं पृष्ठ भाग, भुजाएं, हाथ,हथेली, अंगुली, कटि, पैर आदि सभी की मांसपेशियों को शिथिल किया जाता है। ___ इस प्रकार शारीरिक अवयव एवं मांसपेशियों के शिथिल हो जाने पर स्थूल शरीर से सम्बन्ध विच्छेद होकर सूक्ष्म शरीर से- तैजस और कार्मण से सम्बन्ध स्थापित किया जाता है। तैजस शरीर से दीप्ति प्राप्त होती है। कार्मण शरीर के साथ सम्बन्ध स्थापित कर भेद-विज्ञान का अभ्यास किया जाता है। इस तरह शरीरआत्मैक्य की जो भ्रान्ति है, वह कायोत्सर्ग द्वारा समाप्त हो जाती है।37 _ 3. लेटी हुई मुद्रा में कायोत्सर्ग करने वाला सिर से लेकर पैर तक के अवयवों को पहले ताने, फिर स्थिर करें। हाथ-पैर को सटाये हुए न रखें। दंडासन या शवासन का आश्रय ले। इस कायोत्सर्ग में भी अंगों का स्थिर और शिथिल होना आवश्यक है। शिथिलीकरण की प्रक्रिया पूर्ववत ही समझें।। जहाँ तक शारीरिक सामर्थ्य हो, जब तक खड़े रह सकें तब तक खड़े-खड़े कायोत्सर्ग करना चाहिए। तीर्थंकर प्रायः इसी मुद्रा में कायोत्सर्ग करते हैं। आचार्य अपराजितसूरि ने कहा है कि कायोत्सर्ग करने वाला साधक शरीर से निष्क्रिय होकर खम्भे की तरह खड़ा हो जाये, किन्तु शरीर को एकदम अकड़ाकर एवं झुकाकर न रखें। यह कायोत्सर्ग का उत्कृष्ट प्रकार है। शरीर का सामर्थ्य न हो तो बैठकर कायोत्सर्ग करें। इसमें भी असमर्थ हो, तो लेटकर कायोत्सर्ग करें।38 कायोत्सर्ग का कालमान __ प्रयोजन की दृष्टि से कायोत्सर्ग के दो प्रकार हैं- 1. चेष्टा और 2. अभिभव। चेष्टा कायोत्सर्ग दोष विशुद्धि के लिए प्रतिदिन किया जाता है जैसे
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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