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________________ 208... षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में क्रियाकाण्ड नहीं करते हुए स्व-स्वरूप को प्राप्त करने में प्रमादी हैं, वे भी डूबते हैं, किन्तु जो ज्ञानरूप में परिणत हुए कर्म नहीं करते हैं और प्रमाद के वशीभूत नहीं होते हैं, वे लोकान्त ( सिद्धस्थान) को प्राप्त कर लेते हैं। स्पष्ट है कि जो ज्ञानस्वरूप आत्मा को नहीं जानते और व्यवहार दर्शन, ज्ञान, चारित्ररूप क्रियाकाण्ड के आडम्बर को ही मोक्ष का कारण मानकर उसमें तच्चित्त रहते हैं वे कर्मनयावलम्बी संसार - समुद्र में डूबते हैं तथा जो आत्मा के यथार्थ स्वरूप को तो नहीं जानते और उसके पक्षपातवश व्यवहार दर्शन, ज्ञान, चारित्र को निरर्थक जानकर छोड़ देते हैं ऐसे ज्ञाननय के पक्षपाती भी डूबते हैं, क्योंकि वे बाह्यक्रिया को छोड़कर स्वेच्छाचारी हो जाते हैं और स्वरूप के विषय में प्रमत्त बने रहते है। किन्तु जो पक्षपात का अभिप्राय छोड़कर निरन्तर ज्ञानरूप में प्रवृत्ति करते हैं, कर्मकाण्ड नहीं करते । यद्यपि जब तक ज्ञानरूप आत्मा में परिणमन करना शक्य नहीं होता, तब तक अशुभ कर्म को छोड़कर स्वरूप उपलब्धि के साधन रूप शुभ क्रिया में प्रवृत्ति करते हैं। वे कर्मक्षय करके संसार से मुक्त हो जाते हैं। आशय यह है कि जब तक आत्म स्वरूप की प्रतीति नहीं हो जाती, ऐन्द्रिक चंचलता समाप्त नहीं हो जाती, उस स्थिति में पूर्वकाल तक शुभ क्रियाओं में निरत रहना आवश्यक है। 74 अवन्दनीय कौन? अर्हत प्रणीत धर्म गुणमूलक है, व्यक्ति मूलक नहीं। इस शासन में सद्गुणी पुरुष को ही वन्दनीय माना गया है, फिर चाहे वह ब्रह्मा हो, विष्णु हो या महेश हो। आचार्य भद्रबाहु ने अवन्दनीय को वन्दन करने का स्पष्ट निषेध किया है। वे कहते हैं कि गुणहीन को नमस्कार नहीं करना चाहिए । अवन्दनीय व्यक्तियों को नमस्कार करने से न तो कर्म निर्जरा होती है और न ही कीर्ति प्रसरित होती है, प्रत्युत असंयमी और दुराचारी का अनुमोदन करने से नवीन कर्मों का उपार्जन होता है। 75 उन्होंने यह भी कहा है कि अवन्दनीय व्यक्ति जो यह जानता है कि मेरा जीवन दुर्गुणों का आगार है फिर भी सद्गुणी से नमस्कार ग्रहण करता है तो वह स्वयं के जीवन को दूषित करता है तथा असंयम भाव की अभिवृद्धि कर स्वयं को पतनोन्मुख करता है। 76
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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