SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 109
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सामायिक आवश्यक का मौलिक विश्लेषण .... ...51 हैं। इसी उपदेश के आधार पर गणधर अपने बुद्धिबल से द्वादशांगी की रचना करते हैं। द्वादशांगी का आरम्भ सामायिकसूत्र से ही होता है। सामान्य साधक अपने अध्ययन क्रम में सबसे पहले सामायिकसूत्र का ही अध्ययन करता है। इस प्रकार सामायिक का सर्वोपरि स्थान है। जैन विचारधारा में आराधना की तरतमता एवं आराधक की योग्यता की अपेक्षा सामायिक के अनेक प्रकार बतलाये गये हैं जो निम्न हैं द्विविध भेद - पात्र की अपेक्षा सामायिक दो प्रकार की होती है- 1. गृहस्थ की सामायिक और 2. श्रमण की सामायिक । द्रव्य और भाव की अपेक्षा भी सामायिक दो प्रकार की कही गई है 1. द्रव्य सामायिक- सामायिक में स्थिर होने के लिए आसन बिछाना, चरवला, मुखवस्त्रिका आदि धार्मिक उपकरण एकत्रित करना एवं एक स्थान पर अवस्थित होना यह द्रव्य सामायिक है। 2. भाव सामायिक - द्रव्य आराधना पूर्वक आत्मभावों में लीन रहना भाव सामायिक है। परम्परानुसार गृहस्थ की सामायिक 48 मिनट (एक मुहूर्त्त ) की होती है। वह अपनी शक्ति एवं स्थिति के अनुसार क्रमशः एक से अधिक सामायिक कर सकता है। श्रमण की सामायिक यावज्जीवन के लिए होती है। त्रिविध भेद - आचार्य भद्रबाहु ने सामायिक के तीन भेद किए हैं- 1. सम्यक्त्व सामायिक 2. श्रुत सामायिक और 3. चारित्र सामायिक । सम्यक्त्व सामायिक का अर्थ सम्यग्दर्शन, श्रुत सामायिक का अर्थ सम्यग्ज्ञान और चारित्र सामायिक का अर्थ सम्यक् चारित्र है । समभाव की साधना के लिए सम्यक्त्व और श्रुत- ये दोनों आवश्यक माने गए हैं। सम्यक्त्व के बिना श्रुत सम्यक् नहीं होता तथा इन दोनों के बिना चारित्र सम्यक् नहीं होता। 27 जैन आचार की दृष्टि से सम्यक्त्व व्रत ग्रहण करना सम्यक्त्व सामायिक और श्रुत सामायिक है, बारहव्रत स्वीकार करना देशविरति सामायिक है और दीक्षा अंगीकार करना चारित्र सामायिक है। यदि ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो आगम साहित्य में सामायिक के त्रिविध भेद की चर्चा लगभग उपलब्ध नहीं होती है, केवल आवश्यकसूत्र पर लिखा गया टीका साहित्य ही इस विषय का प्रतिपादन करता है। इसके परवर्तीकालीन ग्रन्थकारों ने इन्हें व्रत विशेष में समाहित कर लिया है।
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy