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________________ जैन एवं इतर साहित्य में प्रतिपादित प्रायश्चित्त विधियाँ... 233 • प्रत्येक महीने में रजोधर्मी स्त्री को उस रजोधर्म के होने के समय से तीन दिन तक सूतक रखना चाहिए, चौथे दिन वह स्त्री केवल पति के लिए शुद्ध मानी जाती है तथा दान और पूजा आदि कार्यों में पाँचवें दिन शुद्ध मानी जाती है। 94 ॥ • रजोधर्म में वह स्त्री पहले दिन चाण्डालिनी के समान, दूसरे दिन अब्रह्मचारिणी के समान और तीसरे दिन धोबिन के समान मानी जाती है। इस प्रकार तीनों दिन अशुद्ध रहती है। चौथे दिन पूर्ण स्नान कर लेने पर वह शुद्ध होती है। 1951 • क्षुल्लिका एवं आर्यिका आदि दीक्षित स्त्रियों को सामर्थ्य हो तो रजस्वला होने पर तीनों दिन उपवास करना चाहिए अथवा एकान्त में धुली हुई सफेद धोती पहनकर मौन पूर्वक एक से अधिक विगय का त्याग करते हुए एकासन करना चाहिए। 196-98 ।। · क्षुल्लिका एवं आर्यिका को ऋतु धर्म में तीनों दिन अत्यन्त शान्त भाव के साथ प्रसन्न मन से व्यतीत करना चाहिए और चौथे दिन दोपहर के समय शुद्ध जल से स्नान करना चाहिए | 1991 • यदि पुत्र उत्पन्न हुआ हो तो प्रसव माता को दश दिन तक किसी को भी नहीं देखना चाहिए। तदनन्तर बीस दिन तक घर के किसी भी कार्य को नहीं करना चाहिए। इस प्रकार पुत्र उत्पन्न करने वाली स्त्री को एक महीने का सूतक लगता है। उसके बाद वह जिन पूजा और पात्रदान के लिए शुद्ध मानी जाती है।।101 ।। • यदि कन्या उत्पन्न हुई हो तो उसे दश दिन तक किसी के दर्शन नहीं करने चाहिए और बीस दिन तक घर के काम-काज का त्याग करना चाहिए। उसके बाद पन्द्रह दिनों तक भी उसे जिनपूजा आदि नहीं करनी चाहिए। इस प्रकार कन्या उत्पन्न स्त्री के लिए पैंतालीस दिन का सूतक माना गया है।।102-103।। मुनि सम्बन्धी दोषों के प्रायश्चित्त • यदि किसी मुनि के द्वारा बारह की संख्या में एकेन्द्रिय जीवों का अज्ञानता से घात हो जाये तो एक उपवास। यदि छः की संख्या में बेइन्द्रिय जीवों का घात हो जाये तो एक उपवास, यदि चार तेइन्द्रिय जीवों का घात हो
SR No.006247
Book TitlePrayaschitt Vidhi Ka Shastriya Sarvekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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