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________________ जैन एवं इतर साहित्य में प्रतिपादित प्रायश्चित्त विधियाँ...223 • अविधि पूर्वक गुरु वन्दन करें अथवा उनसे बातचीत करें तो दस उपवास का प्रायश्चित्त आता है। • रोग आदि में चिकित्सा करवाने पर एकासन का प्रायश्चित्त आता है। • कामभाव के बिना भी स्त्रियों के साथ अत्यधिक संलाप (वार्तालाप) करने पर, अन्य तैर्थिकों से वाद-विवाद करने पर, कौतुकवश उन्हें देखने पर तथा मिथ्याशास्त्र का अध्ययन करने पर आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है। . पार्श्वस्थ एवं अवसन्न भिक्षु के साथ रहने पर या उनके जैसा आचरण करने पर मूल प्रायश्चित्त आता है। • बलात्कार पूर्वक सर्व व्रतों का भंग करने पर दस उपवास का प्रायश्चित्त आता है। (आचारदिनकर, भा. 2, पृ. 257) ___ध्यातव्य है कि प्रायश्चित्त अधिकार में जहाँ भी मुनि या साधु के नाम का उल्लेख हो वहाँ साध्वी का भी समझ लेना चाहिए। इसी प्रकार जहाँ श्रावक या गृहस्थ के नाम का सूचन हो वहाँ श्राविका का अन्तर्भाव कर लेना चाहिए। द्रव्य दोषों की प्रायश्चित्त विधि ____ आचार्य वर्धमानसूरि ने भाव प्रायश्चित्त के समान द्रव्य प्रायश्चित्त का भी निरूपण किया है। जिस प्रकार भाव दोषों के प्रायश्चित्त के रूप में दस प्रकार की प्रायश्चित्त विधि बताई गई है उसी प्रकार बाह्य (द्रव्य) दोषों की शुद्धि के लिए पाँच प्रकार के प्रायश्चित्त बताए गए हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं___ 1. स्नान के योग्य 2. करने के योग्य 3. तप के योग्य 4. दान के योग्य और 5. विशोधन के योग्य। (आचारदिनकर, भा. 2, पृ. 258) - सभी प्रकार के सुगन्धित पदार्थों से युक्त जल द्वारा नख से शिखा पर्यन्त स्नान करना, पंचगव्य एवं देवता के स्नात्र जल से आचमन करना। इसी प्रकार तीर्थों के जल एवं गुरु के चरणों से स्पर्शित जल द्वारा आचमन करना स्नान योग्य प्रायश्चित्त कहा जाता है। ___ जिन पापों की शुद्धि शान्तिक-पौष्टिक कर्म, तीर्थयात्रा, देव-गुरु की पूजा, संघ-पूजा आदि धार्मिक क्रियाओं के द्वारा होती हो, उन्हें विचक्षणों ने करणीयार्ह (करने के योग्य) प्रायश्चित्त कहा है।
SR No.006247
Book TitlePrayaschitt Vidhi Ka Shastriya Sarvekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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