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________________ जैन एवं इतर साहित्य में प्रतिपादित प्रायश्चित्त विधियाँ...215 सुखं वदेत्।।110।। मुखवस्त्रेप्यसंघट्टे तथा धर्मध्वजेपि च। शुद्धये विरसः कैश्चिदनाहार उदाहृतः।।111।। अलब्धेऽप्यथ लब्धे वा हारिते मुखवाससि। उपवासः परं शुद्धयै सूरिभिः समुदाहृतः।।112।। धर्मध्वजे हारिते च न प्राप्ते सुखमिष्यते। धर्मध्वजाननसिचोरेवं तप उदीरितम्।।113।। नष्ट योश्च द्वयोः प्राप्तौ निःपापः शुद्धिहेतवे। अप्राप्तौ च द्वयोः कार्यं पुण्यमेव मनीषिभिः।।114।। मुखवस्त्रप्रतिलेखे यतिकर्म समाचरेत्। धर्मध्वजाप्रतिलेखे पितृकालो विशोधनम्।।115।। अकृते घस्रचरमप्रत्याख्याने च निर्मदम्। प्रत्याख्याने पानसत्के संख्यास्वाध्यायजेऽथवा।।116।। प्रत्याख्यानेप्यरचिते सुभोजनमपापकृत्। चतुर्विधाहारजे च प्रत्याख्यानेप्यनिर्मिते।।117।। सन्ध्यायां च विभाते च प्रत्याख्यानाद्यनुद्यमे। कृतस्यापि हि भङ्गे च पितृकालो विशुद्धिकृत्।।118।। स्थण्डिलाप्रतिलेखे च यतिकर्मविशुद्धये। स्थण्डिलेऽन्यप्रतिलेखिते मलोत्सर्गतो निशि।।119।। गुरु सर्वपात्रभने सजलं शोधनं परम्। सूचीनिर्गमने मुक्तं प्राहुः केचित्तथान्तिमम्।।120।। कपाटं वा कटं वा प्रतिलिख्योद्धाटनाल्लघु। षट्पदीगाढसंघट्टे प्राणाधारो विशोधनः।।121।। कलस्याप्रतिक्रमणे गोचरस्याप्रतिक्रमे। नैषेधिक्याद्यकरणे यतिकर्म समादिशेत्।।122।। (आचारदिनकर, भा. 2 प्र. 251-253) • योगवाही अप्रासुक आहार का भक्षण करे, रात्रि के समय भोजन-पानी को पात्र से ढ़ककर रखे अथवा रात्रि में उसका क्वाथ बनाए, अकाल में मलमूत्र का विसर्जन करे, अप्रतिलेखित स्थण्डिलभूमि पर मलमूत्र का विसर्जन करे, शरीर शुद्धि करे, मधुकरीवृत्ति से गोचरी ग्रहण न करे। प्रगाढ़ रूप से क्रोध, मान, माया एवं लोभ करे, पंच महाव्रतों की पूर्णरूप से विराधना करके उसकी आंशिक आलोचना ही करे, दूसरों की चुगली और निन्दा करे, पुस्तक को भूमि पर या बगल में रखे या उसे दूषित हाथों से ग्रहण करे-तो इन सब दोषों की शुद्धि हेतु उपवास का प्रायश्चित्त आता है। • शुभ या अशुभ शब्द, रूप, रस, गन्ध एवं स्पर्श के प्रति क्रमश: राग रखने पर आयंबिल का तथा द्वेष करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है। • आवश्यक क्रिया बैठकर करने पर आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है। • शक्ति होने पर भी बैठे-बैठे प्रतिक्रमण करे अथवा आवश्यक क्रिया न
SR No.006247
Book TitlePrayaschitt Vidhi Ka Shastriya Sarvekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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