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________________ जैन एवं इतर साहित्य में प्रतिपादित प्रायश्चित्त विधियाँ... 193 इष्यते । पातने पुस्तकादीनां कक्षाया धारणे तथा । | 3 | | दुर्गन्धहस्तोद्वहने पादनिष्पूतघट्टने । एषु प्रत्येकमाख्येयं शोधनं धातुहृत्परम् ।।4।। जघन्याशात नायां तु ज्ञानस्यैव विलम्बकः । मध्यायां परमश्चैव प्रकृष्टायां द्विपादकम्।।5।। केचिदत्र गुरुं प्राहुर्विशेषादागमस्य आशातनायामाचाम्लं तत्सूत्रस्य पुनर्गुरुः ।।6।। च। ( आचारदिनकर भा. 2, पृ. 254 ) · व्यवहार जीतकल्प के अनुसार ज्ञानाचार का भंग होने पर, अकाल, अविनय आदि आठ अतिचारों के लगने पर प्रत्येक अतिचार की शुद्धि हेतु एकासन का प्रायश्चित्त बताया गया है। • ज्ञानी एवं ज्ञान के साधनों के प्रति उपेक्षा भाव रखने पर या उनकी आशातना करने पर एकासन का प्रायश्चित्त आता है। • अध्ययन करते समय एवं व्याख्यान के समय कोई विघ्न उत्पन्न करने पर एकासन का प्रायश्चित्त आता है। • पुस्तक आदि ज्ञान उपकरणों को नीचे भूमि पर रखने से, बगल (कांख) में रखने से, अपवित्र हाथों द्वारा उठाने से अथवा उन पर अपवित्र वस्तु का लेप करने से इन सभी दोषों में प्रत्येक के लिए आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है। • ज्ञान की जघन्य आशातना करने पर पुरिमड्ढ, मध्यम आशातना करने पर एकासन तथा उत्कृष्ट आशातना करने पर आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है। किंच गीतार्थ इसके लिए उपवास का प्रायश्चित्त भी कहते हैं। • सामान्यतः आगम की आशातना करने पर आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है, किन्तु उसके किसी सूत्र विशेष की आशातना करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है। 6. दर्शनाचार से सम्बन्धित दोषों के प्रायश्चित्त तथा च दर्शनाचारे शङ्कादिषु च पञ्चसु । देशाक्रान्तेषु प्रत्येकं कामघ्नं शुद्धये दिशेत् ।। 7 ।। कृतेषु सर्वतस्तेषु निः पापात्पापशोधनम् । असंयमस्थिरीकामे मिथ्यादृष्टिप्रशंसने ।। 8 ।। पार्श्वस्थादिषु वात्सल्ये देशादेकान्नमादिशेत् । सर्वतस्तेषु मुक्तं च तथाऽसंयमघोषणे । ।9।। देशतः प्राहुरेकान्नं सर्वतो धर्म एव च । यतिप्रवचनश्लाघ्येषु 'प्रशस्तोपबृंहणम्।।10।। अकृते चैव वात्सल्ये सामर्थ्येऽप्यप्रभावने । प्रत्येकं देशतो ज्ञेयं शोधनं धातुहृत्परम्।।11।। सर्वतश्चाकृतेष्वेषु प्रत्येकं गुरुरिष्यते ।
SR No.006247
Book TitlePrayaschitt Vidhi Ka Shastriya Sarvekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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