SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 244
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 178... प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण पृष्ठिवंश आदि चौदह प्रकार की अतिविशुद्ध कोटि वाली दूषित वसति में रहने पर चतु:गुरु का प्रायश्चित्त आता है। विशुद्ध कोटि वाली दुमिता - धूपिता-वासिता आदि वसति में रहने पर चतुः लघु का प्रायश्चित्त आता है। स्थण्डिल सम्बन्धी दोषों के प्रायश्चित्तआवाए संलोए झुसिरतसेसुं हवंति चउलहुया । आसन्नबिले पुरिमं पुरिमं सेसेसु सव्वेसु ।। चउगुरु (विधिमार्गप्रपा, पृ. 89 ) उत्तराध्ययनसूत्र के अनुसार स्थण्डिल भूमि निम्न दोषों से रहित होनी चाहिए, अन्यथा प्रायश्चित्त आता है। उक्त गाथा के अनुसार 1. आपात -संलोक- जहाँ लोगों का आवागमन भी हो और दिखाई भी देते हों। 2. झुसिर - भूमि पोली हो। 3. त्रसप्राणबीज सहित - स प्राणी और बीजों से युक्त हो- इन दोषयुक्त भूमि पर मल-मूत्र आदि का परिष्ठापन करने से चतुः लघु का प्रायश्चित्त आता है। 4. आसन्न - बहुत नीचे (चार अंगुल) तक सचित्त हो। 5. बिल-बिल सहित हो इन स्थानों पर अशुचि का विसर्जन करने पर चतुः गुरु का प्रायश्चित्त आता है। 6. अनुपघात - जिस स्थान पर उपघात हो, 7. जो विषम हो, 8. चिरकालकृत- कुछ समय पूर्व तक सजीव रही हो, 9. अविस्तीर्ण-अधिक विस्तार वाली न हो, 10. अदूर- गाँव, बगीचे आदि से निकट हो, इन स्थानों पर अशुद्ध पदार्थों का परित्याग करने से पुरिमड्ढ का प्रायश्चित्त आता है। वंदन सम्बन्धी दोषों के प्रायश्चित्त पडणीय दुट्ठ तज्जिय, खमणं आयाम रुट्ठथद्धेसु । गारव तेणिय हीलिय, जुए पुरिमं च सेसेसु ।। (विधिमार्गप्रपा, पृ. 89 ) वन्दन करते वक्त लगने वाले 33 दोषों के प्रायश्चित्त निम्नोक्त हैं1. शत्रु भाव से वन्दन करने पर, 2. दुष्ट भाव से वन्दन करने पर, 3. अंगुली से तर्जना करते हुए वन्दन करने पर, 4. स्वयं क्रुद्ध हो उस समय वन्दन करने पर, 5. अभिधान पूर्वक वन्दन करने पर इन सभी में उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
SR No.006247
Book TitlePrayaschitt Vidhi Ka Shastriya Sarvekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy