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________________ 118...प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण प्रायश्चित्त आता है। यह प्रायश्चित्त आंशिक दोष की अपेक्षा से कहा गया है। • पृथ्वीकाय से लेकर चउरिन्द्रिय तक आठ प्रकार के जीवों का संघर्षण (कष्ट युक्त स्पर्श) करने पर सर्वथा से क्रमश:- दो पुरिमड्ढ, तीन नीवि, चार एकासना, दो आयंबिल, दो उपवास, तीन उपवास, चार उपवास, पाँच उपवास का प्रायश्चित्त आता है। • पंचेन्द्रिय जीवों को अत्यन्त पीड़ित करने पर पूर्वोक्त पाँचों का पंचगुणा प्रायश्चित्त आता है। • कल्पशास्त्र के अनुसार पृथ्वीकाय से लेकर संज्ञी पंचेन्द्रिय तक के जीवों को परिताप देने पर पाँचों का दुगुणा तथा इन्हीं जीवों को मारणान्तिक कष्ट देने पर पुरिमड्ढ आदि का पाँच गुणा प्रायश्चित्त आता है। . कल्पशास्त्र के अनुसार पृथ्वीकाय से लेकर संज्ञी पंचेन्द्रिय तक के जीवों का संघर्षण करने पर एक आयंबिल, उन्हें संताप देने पर दो आयंबिल तथा उन्हें मारणांतिक कष्ट देने पर तीन आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है। यह प्रायश्चित्त सर्वथा दोष की अपेक्षा कहा गया है। • कल्पशास्त्र के नियमानुसार पृथ्वीकाय से लेकर संज्ञी पंचेन्द्रिय तक के जीवों का प्रमाद से संघर्षण, परितापन एवं उपमर्दन करने पर क्रमश: एक उपवास, दो उपवास, तीन उपवास का प्रायश्चित्त आता है। . . पृथ्वीकाय से लेकर संज्ञी पंचेन्द्रिय तक के जीवों का दर्प से संघर्षण, परितापन एवं उपमर्दन करने पर क्रमश: दो उपवास, तीन उपवास, चार उपवास का प्रायश्चित्त आता है। . पृथ्वीकाय से लेकर संज्ञी पंचेन्द्रिय तक के जीवों का जानबूझकर संघर्षण, परितापन एवं उपमर्दन करने पर क्रमश: दो उपवास, तीन उपवास, चार उपवास का प्रायश्चित्त आता है। 3. सत्याणुव्रत-अस्तेयाणुव्रत-परिग्रहपरिमाणव्रत सम्बन्धी दोषों के प्रायश्चित्त मुसावाय-अदिन्नादाण-परिग्गहेसु जहन्नाइसु ए., आं., उ.। दप्पेण तिसु वि पंचकल्लाणं। अहवा मुसावाए जहण्णे पु., मज्झिमे आं., उक्किट्ठे पंचकल्लाणं। दप्मेणं जहन्न-मज्झिमेसु वि तं चेव। दव्वाइचउविहे
SR No.006247
Book TitlePrayaschitt Vidhi Ka Shastriya Sarvekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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