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________________ जैन एवं इतर साहित्य में प्रतिपादित प्रायश्चित्त विधियाँ... 113 • पूर्वोक्त हास्य आदि की क्रीडाएँ पुरुषों द्वारा स्त्रियों के साथ करने पर छह उपवास एवं छह पुरिमड्ढ का प्रायश्चित्त आता है। सामाचारी विशेष से सम्यक्त्वव्रत सम्बन्धी दोषों में निम्न प्रायश्चित्त आते हैं देवजगईए मज्झे भोयणे उ. 1, पाणे आं. 11 जईणं भोयणे कए उ. 5, पाणे 21 तेसिं नियडे निद्दाकरणे आं. 2, 3. 31 देसओ पच्छा अब्बूं, अप्पं ओघिज्जइ । देसओ ए. 2, उ. । सव्वओ नि. 31 उस्सुत्तअणुमोयणे देसओ उ., आं.; सव्वओ उ. 5, आं. 3, नि. 3, ए. 51 देवदव्वउवभोगे कए थोवे उ. 5, आं. 5, नि. 5, ए. 5, पु. 51 पउरे जणन्नाए एवं चउग्गुणं, अन्ना दुगुणं । सव्वओ नाए पंचावि वीसगुणा । अन्नाए दसगुणा । उवेक्खणे पण्णाहीणे अन्नाए पंचावि सव्वओ तिगुणा, नाए चउग्गुणा । एवं साहम्मियधणोवभोगे नाए चउग्गुणा, अन्नाए दुगुणा । साहम्मिएण सह कलहे अन्नाए थोवे उ., आं., नि., पु., ए. । पउरे नाए तिगुणा । साहम्मियअवमाणे थोवे अन्नाए उ., आं., नि., पु., ए. । पउरे नाए बिउणा । गिलाण अपालणे देसओ पंचावि दुगुणा | साहम्मियगिलाणअपालणे देसओ पंचगुणा, सव्वओ छग्गुणा । सामन्नओ विसेसओ गिलाणअपालणे सव्वओ पंचवीसगुणा । देसओ सम्मत्ताइयारेसु अट्ठसु पंचावि एगगुणाई जाव अट्ठगुणा, सव्वओ दुगुणाई जाव नवगुणा । (विधिमार्गप्रपा, पृ. 92 ) • जिन मन्दिर के परिसर में भोजन करने पर एक उपवास और पेय पदार्थों का सेवन करने पर एक आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है। • जिनालय के परिसर में साधु द्वारा भोजन करने पर पाँच उपवास और पेय द्रव्यों का भोग करने पर दो उपवास का प्रायश्चित्त आता है। • जिनालय के निकटवर्ती स्थान में शयन करने पर दो आयंबिल और तीन उपवास का प्रायश्चित्त आता है। पूर्वोक्त दोष आंशिक रूप से लगने पर निर्धारित प्रायश्चित्त आधा करके अथवा सामान्य से अल्प भी दिया जाता है । • जिनालय के परिसर में आंशिक निद्रा लेने पर दो एकासना और एक उपवास का प्रायश्चित्त आता है तथा सर्वथा दोष में तीन नीवि का प्रायश्चित्त आता है।
SR No.006247
Book TitlePrayaschitt Vidhi Ka Shastriya Sarvekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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