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________________ तप के भेद-प्रभेद एवं प्रकारों का वैशिष्ट्य...29 ऊनोदरी के महत्त्व को न समझने वाले या आहारसंज्ञा को नहीं छोड़ सकने वाले प्राय: व्यक्ति यह भी कहते हैं कि उपवास करना सरल है, किन्तु भोजन करते हुए पेट को खाली रखना बहुत कठिन है। इस तप के लिए आत्मसंयम, दृढ़ मनोबल एवं संकल्पशक्ति होना आवश्यक है। इसलिए स्मरण में रखना चाहिए कि निराहार रहने की अपेक्षा आहार करते हुए पेट को खाली रखना अधिक संयम और शूरवीरता का कार्य है। प्रकार- सामान्यतया ऊनोदरी तप में इच्छा से न्यून, परिमित आहार तो किया ही जाता है, किन्तु आहार के साथ ही कषाय और उपकरण आदि की भी ऊनोदरी की जाती है। वस्तुत: ऊनोदरी तप ऐन्द्रिक संयम, आवश्यकताओं को न्यून एवं इच्छाओं का निरोध करने के उद्देश्य से किया जाता है। इसीलिए स्थानांगसूत्र में ऊनोदरी तप के तीन भेद किये हैं - 1. उपकरण अवमोदरिका 2. भक्त पान अवमोदरिका और 3. भाव (कषाय त्याग) अवमोदरिका।16 भगवतीसूत्र में ऊनोदरी के निम्न दो भेद किये गये हैं- 1. द्रव्य ऊनोदरी और 2. भाव ऊनोदरी।17 उत्तराध्ययनसूत्र में ऊनोदरी के निम्न पांच प्रकार बतलाये हैं1. द्रव्य ऊनोदरी 2. क्षेत्र ऊनोदरी 3. काल ऊनोदरी 4. भाव ऊनोदरी 5. पर्याय ऊनोदरी।18 ऊनोदरी तप के भेद-प्रभेदों का सामान्य स्वरूप इस प्रकार है - ___1. द्रव्य ऊनोदरी- उत्तराध्ययन सूत्र के अनुसार जिसका जितना आहार है उससे जघन्यतः एक सिक्थ (धान्यकण) और उत्कृष्टत: एक कवल कम खाना, द्रव्य ऊनोदरी तप है।19 द्रव्य ऊनोदरी द्विविध कही गयी है-20 (i) उपकरण द्रव्य ऊनोदरी और (ii) भक्तपान द्रव्य ऊनोदरी। (i) उपकरण द्रव्य ऊनोदरी - उपकार करने वाली वस्तु उपकरण कहलाती है। जिन वस्तुओं के द्वारा शरीर की रक्षा हो, लज्जा का निवारण हो, जो भूख-प्यास आदि मिटाने में सहयोगी हो उन्हें उपकरण कहा गया है। इस दृष्टि से वस्त्र-पात्र आदि वस्तुओं की उपकरण संज्ञा होती है। आगमों में इन उपकरणों को रखने की जो मर्यादा कही गयी है उससे कम उपकरण रखना, उपकरण द्रव्य ऊनोदरी है।
SR No.006246
Book TitleTap Sadhna Vidhi Ka Prasangik Anushilan Agamo se Ab Tak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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