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________________ तप का स्वरूप एवं परिभाषाएँ...17 या पातिशासनं जैने, सद्यः प्रत्यूह नाशिनी। साभिप्रेत समृद्धयर्थं, भूयाच्छासन देवता ।। • तदनन्तर “समस्त वैयावृत्यकर देवता आराधनार्थं करेमि काउस्सग्गं" पूर्वक अन्नत्थसूत्र बोलकर एक नमस्कार मन्त्र का स्मरण करें। पूर्णकर निम्न स्तुति बोलें - श्री शक्रप्रमुखा यक्षाः, जिन शासन संस्थिताः । देवान् देव्यस्तदन्येऽपि, संघं रक्षत्व पापतः ।। • तत्पश्चात चैत्यवन्दन मुद्रा में बैठकर णमुत्थुणं०, जावंति चेइयाइं०, जावंत केविसाहू०, उवस्सग्गहरं०, जयवीयराय० तक सूत्र बोलकर चैत्यवन्दन करें। • फिर स्थापनाचार्य के सम्मुख एक खमासमण देकर- "भगवन् ! अमुक तव गहणत्यं करेमि काउस्सग्गं" इतना कहकर एक लोगस्ससूत्र का कायोत्सर्ग करें। • फिर एक खमासमण देकर अर्धावनत मुद्रा में तीन नमस्कार मन्त्र का स्मरण करें। • पुन: एक खमासमण देकर अर्धावनत मुद्रा में स्थित होकर बोलें"इच्छकार भगवन् ! अमुक तप दंडक उच्चरावोजी।" गुरु कहें - 'उच्चरावेमो।' उसके बाद जो तप उचरना हो उसके स्मरण पूर्वक गुरुमुख से तीन बार निम्नलिखित पाठ सुनें "अहण्णं भंते! तुम्हाणं समीवे, अमुकतवं उवसंपज्जाणं विहरामि। तं जहा- दव्वओ, खित्तओ, कालओ, भावओ। दव्वओणं (अमुक तवं), खित्तओणं इत्थ वा अणत्थ वा, कालओणं जाव परिमाणं, भावओणं जाव गहेणं ण गहिज्जामि, छलेणं ण छलिज्जामि जाव सन्निवाएणं ण भविज्जामि, जाव अण्णेण वा केणइ रोगायंकेण वा परिणामवसेण। एसो मे परिणामो ण पडिवज्जइ। ताव मे एस तवो रायाभियोगेणं, गणाभियोगेणं, बलाभियोगेणं, देवाभियोगेणं, गुरुनिग्गहेणं, वित्तिकंतारेणं, अणत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरे।" फिर गुरु आशीर्वचन के रूप में कहें -
SR No.006246
Book TitleTap Sadhna Vidhi Ka Prasangik Anushilan Agamo se Ab Tak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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