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________________ तप का स्वरूप एवं परिभाषाएँ... 11 अष्टप्रकारी पूजा करनी चाहिए 2. विधिपूर्वक पौष्टिक कर्म करना चाहिए। उस पौष्टिक कर्म में नवग्रह, दशदिक्पाल एवं यक्ष-यक्षणियों का नैवेद्य और उत्तम फलों से बृहत पूजन किया जाता है 3. तप के प्रारम्भ में सद्गुरु को निर्दोष पुस्तक, वस्त्र, पात्र और अन्न का दान देना चाहिए 4. संघपूजा करनी चाहिए 5. क्षेत्र देवता और नगर देवता की पूजा करनी चाहिए | 42 तप वहन सम्बन्धी आवश्यक नियम आचारदिनकर के अनुसार तपस्या के दरम्यान निम्नोक्त सामाचारी का ख्याल रखना चाहिए 1. तप करते वक्त बीच में यदि पर्व तिथि का तप आता हो, तो प्रवर्त्तमान बृहद् तप को न करके उस पर्व तिथि के तप को अवश्य करना चाहिए और फिर पूर्व से आराधित उस बड़े तप को भी करना चाहिए, क्योंकि सत्पुरुष का नियम दुर्लघ्य होता है। 2. एक तपस्या के मध्य कोई दूसरा तप भी करणीय हो, तो ऐसी स्थिति में जो तप बड़ा हो वह करना चाहिए तथा शेष रहा हुआ लघु तप उसके बाद करना चाहिए। इसका स्पष्टार्थ यह है कि किसी तप को एकासन से प्रारम्भ किया हो और उसमें किसी दूसरे तप का उपवास आ जाए, तो उस समय उपवास करना चाहिए तथा एकासन बाद में करना चाहिए। 3. अनाभोग आदि (अचानक या विस्मृतिवश ) कारणों से यदि तप बीच में खण्डित हो जाये तो उसकी उसी तप से आलोचना कर लेनी चाहिए और बाद में वह आलोचना सम्बन्धी तप करना चाहिए । 4. अनुक्रम वाले तप में प्राय: करके तिथियों के क्रम को नहीं गिनना चाहिए अर्थात विशिष्ट तिथि के दिन खाना पड़े और सामान्य तिथि के दिन उपवास आदि करना पड़े तो उसे उसी प्रकार से करना चाहिए। 5. गृहस्थों को प्रत्येक तप का उद्यापन तप-विधि में बताये गये नियमानुसार करना चाहिए। साधुओं ने तपस्या की हो तो उसका उद्यापन श्रावक से करवाना चाहिए अथवा ऐसा संभव न हो तो मानसिक उद्यापन करना चाहिए। 43 6. पंचमी, अष्टमी, चतुर्दशी आदि तिथियों की वृद्धि होने पर उस तिथि विषयक आराधना के लिए पहली तिथि ग्राह्य मानी गई है । तदुपरान्त स्वगच्छ
SR No.006246
Book TitleTap Sadhna Vidhi Ka Prasangik Anushilan Agamo se Ab Tak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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