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________________ 4 ... तप साधना विधि का प्रासंगिक अनुशीलन आगमों से अब तक • चारित्रसार में तप का अर्थ कुछ अलग हटकर किया गया है। यहाँ चामुण्डराय कहते हैं कि "रत्नत्रयाविर्भावार्थभिच्छानिरोधस्तपः।” अथवा "कर्मक्षयार्थं मार्गाविरोधेन तप्यते इति तपः । " रत्नत्रय का आविर्भाव करने के लिए मिथ्यात्व भाव का निरोध करना, उसे रोकना तप है अथवा जिसके द्वारा पाप कर्मों का क्षय करने के लिए उन्मार्ग को अविरोध ( प्रबल शक्ति) पूर्वक तपाया जाता है, वह तप है। 16 • • मूलाचार टीका में आचार्य वट्टकेर ने तप का निम्न लक्षण बतलाते हुए कहा है- "तपति दहति शरीरेन्द्रियाणि तपः बाह्याभ्यन्तरलक्षणं कर्मदहन समर्थम्।” जिसमें शरीर और इन्द्रियाँ तपती हैं, दहकती हैं वह बाह्य तप है और जो कर्मों को जलाने में समर्थ है, वह तप का आभ्यन्तर लक्षण है। 17 जयसेनाचार्यकृत प्रवचनसारवृत्ति के उल्लेखानुसार " समस्त रागादि भावेच्छात्यागेन स्वस्वरूपे प्रतपनं विजयनं तपः । " समस्त रागादि भाव का स्वेच्छा पूर्वक त्यागकर स्व स्वरूप को प्राप्त करना एवं विजयी बनना तप है। 18 • पद्मनन्दि पंचविंशति में तप का गूढ़ार्थ बतलाते हुए मुनि पद्मनन्दि ने कहा है- "कर्ममलविलयहेतोर्बोधदृशा तप्यते तपः प्रोक्तम् ।" अर्थात सम्यग्ज्ञानरूपी नेत्र को धारण करने वाले साधु के द्वारा जो कर्म रूपी मैल को दूर करने के लिए तपा जाता है, उसे तप कहा गया है । वह बाह्य और आभ्यन्तर के भेद से दो प्रकार का तथा अनशन आदि के भेद से बारह प्रकार का है । यह तप जन्म रूपी समुद्र से पार होने के लिए जहाज के समान है। 19 · आचार्य वादीभसिंह ने अहिंसा को तप कहा है। वे क्षत्रचूड़ामणि में लिखते हैं कि “तत्तपो यत्र जन्तूनां सन्तापो नैव जातुचित । " - जिसमें किसी भी जीव को किञ्चित मात्र भी सन्ताप या क्लेश नहीं होता, वही सच्चा तप है | 20 • आचार्य हेमचन्द्र ने टीका ग्रन्थों का अनुसरण करते हुए कर्मों को परितप्त करने वाली क्रिया को तप कहा है। 21 • पंचाशक टीका के अनुसार भी जो क्रिया कर्मों को तपाती है, जलाती है, वह तप है।22 धर्मसंग्रह के निर्देशानुसार जिस आचरण के द्वारा रस आदि धातुओं को क्षीण किया जाता है अथवा कर्ममल को नष्ट किया जाता है, वह तप है। 23 उपर्युक्त अर्थों से निष्कर्ष पाते हैं कि जिस सम्यक् कर्म के द्वारा पाप कर्मों को विनष्ट, शरीर और इन्द्रियों को प्रक्षीण एवं मिथ्या भावों का निरोध किया जाता है, वह तप कहलाता है।
SR No.006246
Book TitleTap Sadhna Vidhi Ka Prasangik Anushilan Agamo se Ab Tak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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