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________________ 2... तप साधना विधि का प्रासंगिक अनुशीलन आगमों से अब तक तप शब्द के विभिन्न अर्थ जैन टीकाओं एवं प्राचीन ग्रन्थों में तप के कई अर्थ उल्लिखित हैं। संस्कृत व्युत्पत्ति के अनुसार "तप्यतेऽनेनेति तपः " अर्थात जिसके द्वारा तपा जाता है अथवा शरीर को तपाया जाता है, वह तप है। शब्द - रचना की दृष्टि से तप शब्द तप् धातु से बना है जिसका अर्थ तपना है। 4 कहा है आचार्य अभयदेवसूरि ने तप का निरुक्त (शाब्दिक अर्थ ) करते हुए "रस- रुधिर-मांस-मेदास्थि - मज्जा शुक्राव्यनेन तप्यन्ते, कर्माणि वाऽशुभानीत्यतस्तपो नाम निरुक्तः । " जिस साधना के द्वारा शरीर के रस, रक्त, मांस, अस्थि, मज्जा और शुक्र- ये धातुएँ और अशुभ कर्म क्षीण होते हैं, सूख जाते हैं, जल जाते हैं, वह तप है। 5 • शास्त्रों में तपस्वियों के सम्बन्ध में वर्णन आता है - "सुक्खे, लुक्खे, निम्मंसे” अर्थात तपस्वी का शरीर लूखा सूखा, मांस-रक्त रहित हड्डियों का ढांचा मात्र बन जाता है और उनके कर्म तो तपकर क्षीण होते ही हैं। इस प्रकार तप की उक्त व्याख्या भौतिक और आध्यात्मिक उभय दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण सिद्ध होती है। जैन • वाङ्मय के सुप्रसिद्ध टीकाकार आचार्य मलयगिरि ने तप का निरूक्त इस प्रकार बतलाया है - " तापयति अष्टप्रकारं कर्म इति तपः । " जो अष्टविध कर्मों को तपाता है अथवा अष्टकर्मों को विनष्ट करने में समर्थ हो, वह तप है।" • जैन आगमों के प्रसिद्ध चूर्णिकार जिनदासगणि महत्तर ने तप की व्याख्या में कहा है- "तप्पते अणेण पावं कम्ममिति तपो । " जिस साधना या आराधना से पाप कर्म तप्त - 1 - विनष्ट होता है, वह तप है। 7 • दशवैकालिकचूर्णि में जिनदासगणि ने तप का विश्लेषण करते हुए कहा है- “तवो णाम तावयति अट्ठविहं कम्मगंठि नासेतित्ति वृत्तं भवइ । " जो आठ प्रकार की कर्म ग्रन्थियों को तपाता है, उसका नाश करता है, वह तप है। 8 हम देखते हैं कि शरद् ऋतु में पहाड़ों पर बर्फ जमती है, पानी की चट्टानें बन जाती हैं। उन पर चलें तो फिसलन की पूर्ण संभावना रहती है, किन्तु ग्रीष्मकाल में वही चट्टानें पानी बनकर बह जाती हैं या सूख जाती हैं। उसी प्रकार
SR No.006246
Book TitleTap Sadhna Vidhi Ka Prasangik Anushilan Agamo se Ab Tak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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