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________________ तप साधना विधि का प्रासंगिक अनुशीलन आगमों से अब तक...xlvii को तपाने या सुखाने की जरूरत क्यों है? आत्म स्वरूप की अनुभूति के लिए तो आत्मध्यान और आत्मज्ञान आवश्यक है फिर शरीर को कृश करने से आत्मा का शुद्धिकरण कैसे संभव है ? महात्मा ने युवक की समस्या को शान्त चित्त से सुना और फिर दूध की ओर इशारा करते हुए उससे कहा- भाई! ऐसा करो यह तपेली में दूध रखा है, पहले इसे गर्म कर ले आओ। अपन दोनों थोड़ा दूध पी लें, फिर तेरे प्रश्न का जवाब दूंगा। वह युवक भी दूध की तपेली लेकर चल दिया और थोड़ी देर में ही दूध गर्म करके ले आया। महात्माजी से बोला- लीजिए यह गर्म दूध, अब मेरे प्रश्न का जवाब दीजिए। महात्मा ने जान-बूझकर दूध की गर्म तपेली को हाथ से छूआ और तत्क्षण हाथ हटाते हुए जोर से चिल्लाये - अरे मूर्ख! मैंने तुझे दूध गर्म करने को कहा था और तुम तपेली गर्म कर ले आये ? तूने यह क्या किया ? वह युवक आश्चर्य में पड़ गया। सोचा, कहीं महात्माजी पागल तो नहीं है? मैं भी कहाँ चला आया इनके पास । उसने कहा- महात्मन्! आप कैसी बात कर रहे हो? तपेली गर्म किये बिना दूध कैसे गर्म हो सकता है ? दूध गर्म करने के लिए तपेली को तो गर्म होना ही पड़ेगा। उस वक्त महात्माजी ने जवाब दिया- समझ लो, शरीर को तपाये बिना आत्मा भी कैसे तपेगी ? दूध के पहले तपेली गर्म होती है ठीक वैसे ही आत्मा को निर्मल बनाने के पहले शरीर तपेगा ही । तप के द्वारा शरीर को तपाकर ही आत्म प्रदेशों पर अवस्थित कर्म रूपी कचरा को जलाया जाता है। जब सम्पूर्ण कर्म जलकर राख हो जाते हैं तभी इस जीव को मोक्ष पद की प्राप्ति होती है। इस उदाहरण का अभिप्राय यह है कि तप से देह, देह से मन और मन से आत्मा प्रभावित होती है। तप का साक्षात प्रभाव शरीर पर पड़ता है। इससे विषय-वासना के कीचड़ की ओर उत्प्रेरित करने वाली पाँच इन्द्रियों का स्वतः निग्रह हो जाता है। आत्मा के ऊर्ध्वगमन के लिए इन्द्रियों का दमन आवश्यक है और इन्द्रिय दमन के लिए तप जरूरी है। एक जगह कहा गया है कि 'तन जीते मन जीत' । अक्सर कहा जाता है कि मन को वश में कर लिया तो काया वश में हो जायेगी। मगर यह
SR No.006246
Book TitleTap Sadhna Vidhi Ka Prasangik Anushilan Agamo se Ab Tak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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