SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 300
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 234...तप साधना विधि का प्रासंगिक अनुशीलन आगमों से अब तक समय का सृजनात्मक कार्यों में उपयोग हो सकता है। यदि प्रबन्धन के दृष्टिकोण से तप की समीक्षा करें तो तप के द्वारा जीवन प्रबन्धन, स्व प्रबन्धन, कषाय प्रबन्धन, शरीर प्रबन्धन, समाज प्रबन्धन आदि कई कार्यों में विशेष सहायता प्राप्त होती है। बाह्य तप विशेष रूप से शरीर प्रबन्धन, स्व प्रबन्धन, समाज प्रबन्धन में निमित्तभूत है। जैसे कि उपवास, ऊनोदरी, रस परित्याग आदि के माध्यम से आहार वृत्ति पर नियन्त्रण रहता है। इसके कारण शरीर सन्तुलित एवं रोगमुक्त रहता है। सात्विक आहार करने से मन के परिणाम भी शुद्ध बनते हैं जिससे क्रोधादि कषाय नियन्त्रित रहते हैं। शारीरिक और मानसिक स्वस्थता जीवन के सर्वाङ्गीण विकास में सहायक बनती है। कायक्लेश, प्रतिसंलीनता, वृत्ति संक्षेप से प्रतिकूल परिस्थिति में रहने का अभ्यास सधता है। अध्ययन, व्यापार, नौकरी आदि के निमित्त बाहर रहते हुए विपरीत परिस्थितियाँ निर्मित हो जाएँ तो भी व्यक्ति उनमें सफलता प्राप्त कर लेता है। यदि समाज व्यवस्था का चिन्तन करें तो आहार के प्रति आसक्ति नहीं होगी और आसक्ति नहीं होगी तो उसका अनावश्यक संचय भी नहीं होगा। अतः समाज में खाद्यान्न सामग्री की अव्यवस्था रूप असन्तुलन सन्तुलित हो जाता है। इसी तरह आभ्यन्तर तप प्रायश्चित्त के द्वारा व्यक्ति को अपने दोषों का, दुर्गुणों का एहसास होता है जिससे वह जीवन को दोष मुक्त बनाने का प्रयास करता है। विनय एवं वैयावृत्य के द्वारा समाज में सेवा, सौहार्द, मेल-जोल, आपसी तालमेल आदि में वृद्धि होती है जिससे सामाजिक व्यवस्थाओं का निर्वाह सम्यक् प्रकार से होता है। स्वाध्याय के माध्यम से सदज्ञान का विकास एवं आदान-प्रदान होने से सांस्कृतिक मूल्यों की पुनर्स्थापना होती है। ध्यान एवं कायोत्सर्ग की साधना से मन,वाणी एवं काय तीनों की एकाग्रता सधती है, तनाव से मुक्ति मिलती है तथा कई मानसिक एवं शारीरिक रोगों का उपशमन स्वयमेव हो जाता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि तप सन्तुलन एवं व्यवस्था का प्रमुख सूत्र है तथा प्रत्येक प्रकार के प्रबन्धन में सहयोगी है। यदि तप की समीक्षा वर्तमान जगत् की समस्याओं के सन्दर्भ में की जाय तो तप के माध्यम से कई समस्याओं का समाधान प्राप्त हो सकता
SR No.006246
Book TitleTap Sadhna Vidhi Ka Prasangik Anushilan Agamo se Ab Tak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy