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________________ 230...तप साधना विधि का प्रासंगिक अनुशीलन आगमों से अब तक है। उस युवा ने दूसरा प्रश्न पूछा - तप में क्या है ? उत्तर दिया - तप में क्या नहीं है? यदि हमारी श्रद्धा हो तो तप में सब कुछ है। उसने पुनः प्रश्न किया - तप क्या देता है? इसके समाधान में कहा गया कि तप से सब कुछ मिलता है। तप नर सुख, सुर सुख और शिव सुख तीनों ही उपलब्ध करवाता है। जब तक आत्मा का मोक्ष नहीं होता, तब तक मनुष्यलोक और देवलोक के समस्त सुख आपके कदमों में रहते हैं। इसका अनुबन्ध (Agreement) तप द्वारा मिलता है। उदयरत्नजी महाराज तप पद की सज्झाय में कहते हैं - तीर्थङ्कर पद पामीये रे, नासे सघला रोग। रूप लीला सुख साहिबी रे, ए सवि तप संजोग ।। संसार से जब तक मोक्ष नहीं होता तब तक भौतिक सभी सुखों की प्राप्ति तप से ही होती है जैसे कि तीर्थङ्कर पद (सर्वोत्कृष्ट पुण्य भोग) की प्राप्ति होती है, सभी रोगों का नाश होता है, सौन्दर्य आदि सुख बढ़ते जाते हैं। इससे भी अधिक कहें तो "लब्धि अट्ठावीस उपजे रे, मनवांछित फल थाय" तप की आराधना से अट्ठाईस प्रकार की लब्धियाँ उत्पन्न होती हैं तथा मनोवांछित फलीभूत होते हैं। इतना ही नहीं, तप के प्रभाव से देवी-देवता भी आकर्षित होकर पृथ्वीलोक पर चले आते हैं। सामान्य रूप से जैन-आगमों में साधना का त्रिविध-मार्ग प्रतिपादित है, लेकिन उत्तराध्ययनसूत्र (28/23,35) एवं दर्शनपाहुड (32) में एक जगह चतुर्विध मार्ग का भी वर्णन मिलता है। साधना का चौथा अंग ‘सम्यक् तप' कहा गया है जैसे गीता में ज्ञानयोग, कर्मयोग, भक्तियोग के साथ-साथ ध्यानयोग का भी निरूपण है वैसे ही जैन-परम्परा में सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन और सम्यक्चारित्र के साथ-साथ सम्यक् तप का भी उल्लेख है। परवर्ती परम्पराओं में ध्यानयोग का अन्तर्भाव कर्मयोग में और सम्यक् तप का अन्तर्भाव सम्यक्चारित्र में हो गया। यद्यपि प्राचीन युग में जैन-परम्परा में सम्यक् तप का, बौद्ध-परम्परा में समाधि मार्ग का तथा गीता में ध्यानयोग का स्वतन्त्र स्थान रहा है।
SR No.006246
Book TitleTap Sadhna Vidhi Ka Prasangik Anushilan Agamo se Ab Tak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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