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________________ 218...तप साधना विधि का प्रासंगिक अनुशीलन आगमों से अब तक करने से तप फल में वृद्धि होती है। कहा भी गया है कि "तप फल वाधे रे उजमणा थकी जिम जल पंकज नाल" जैसे पानी से कमलनाल की वृद्धि होती है वैसे ही उजमणा से तप के फल में वृद्धि होती है। उपदेशप्रासाद (भा. 4, पृ. 98) में उद्यापन के मूल्य की चर्चा करते हुए कहा गया है कि वृक्षो यथा दोहद पूरणेन, देहो यथा षडरस भोजनेन। शोभां लभते यथोक्तेनोद्यापनैव तथा तपोऽपि ।। जैसे दोहद पूर्ण करने से वृक्ष और षड्स के भोजन से शरीर विशेष शोभा को प्राप्त होता है उसी प्रकार विधिपूर्वक उद्यापन करने से तप विशेष शोभा को प्राप्त होता है। इसी क्रम में उद्यापन से होने वाले लाभ के विषय में बताया गया है कि लक्ष्मीः कृतार्था सफलं तपेऽपि, ध्यानं सदोच्चैर्जिन बोधिलाभः । जिनस्य भक्तिर्जिनशासन श्रीर्गुणाः, स्युरधापनतो नराणाम् ।। विधिपूर्वक उद्यापन करने से लक्ष्मी कृतार्थ होती है, तप सफल हो जाता है, उच्च प्रकार का ध्यान प्राप्त होता है, बोधिलाभ होता है, रत्नत्रय की भक्ति से पुण्यानुबंधी पुण्य बंधता है, जिनाज्ञा का पालन करने से महाधर्म होता है, जिनशासन की शोभा में वृद्धि होती है तथा भव्य जीवों के लिए धर्म प्राप्ति में निमित्त बनता है। ____इतिहास में उद्यापन सम्बन्धी उल्लेख सम्प्राप्त होते हैं। नवकार मन्त्र की तपाराधना के परिपूर्ण होने पर पेथड़शाह ने बहुत भव्य उद्यापन किया था जिसमें उन्होंने दर्शन-ज्ञान-चारित्र के 68-68 उपकरण रखे। जैसे- 68 चांदी के कलश, 68 चांदी की थाल-कटोरी, 68 सोने की थाली, 68 जरी के रुमाल, 68 रत्न, 68 रत्नजडित ध्वजाएँ आदि। उन उपकरणों में कोई चांदी के, कोई सोने के, तो कोई हीरे मोती के थे। कहने का भावार्थ यह है कि जिस प्रकार पेथड़शाह ने जिनाज्ञा का पालन करते हुए यथाशक्ति उद्यापन कर्म किया, उसी प्रकार हमें भी ‘आणाए धम्मो' की उक्ति को आत्मसात करते हुए उद्यापन का भव्य उत्सव करना चाहिए। इसका
SR No.006246
Book TitleTap Sadhna Vidhi Ka Prasangik Anushilan Agamo se Ab Tak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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