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________________ जैन धर्म की श्वेताम्बर एवं दिगम्बर परम्परा में प्रचलित तप - विधियाँ... 191 अपर्याप्तक, 13 असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तक और 14 असंज्ञी पंचेन्द्रिय अपर्याप्तक– इन चौदह प्रकार के जीवस्थानों की हिंसा का त्याग मन-वचन काय योग तथा कृत, कारित, अनुमोदना इन नौ कोटियों से करना चाहिए। इस अभिप्राय को लेकर प्रथम अहिंसा व्रत के एक सौ छब्बीस उपवास एकान्तर पारणा से होते हैं। दूसरे सत्य महाव्रत के सम्बन्ध में 1 भय, 2 ईर्ष्या, 3 स्वपक्ष पुष्टि, 4 पैशुन्य, 5 क्रोध, 6 लोभ, 7 आत्म प्रशंसा और 8 परनिन्दा - इन आठ निमित्तों से बोले जाने वाले असत्य का पूर्वोक्त नौ कोटियों से त्याग करना चाहिए। इस अभिप्राय से द्वितीय सत्य महाव्रत के बहत्तर उपवास एकान्तर पारणे से किये जाते हैं। तीसरे अचौर्य महाव्रत के सम्बन्ध में 1 ग्राम, 2 अरण्य, 3 खलिहान, 4 एकान्त, 5 अन्यत्र, 6 उपधि, 7 अभुक्तक और 8 पृष्ठ ग्रहण इन आठ भेदों से होने वाली चोरी का पूर्वोक्त नौ कोटियों से त्याग करना चाहिए। इस अभिप्राय से तृतीय अचौर्य महाव्रत में बहत्तर उपवास एकान्तर पारणे से होते हैं। चौथे ब्रह्मचर्य महाव्रत के सम्बन्ध में मनुष्य, देव, अचित्त और तिर्यञ्च इन चार प्रकार के स्त्रियों का - स्पर्शन आदि पाँच इन्द्रियों और तदनन्तर पूर्वोक्त नौ कोटियों से त्याग करना चाहिए। इस अभिप्राय से 5x4 = 20 x 9 = 180 एक सौ अस्सी उपवास एकान्तर पारणे से होते हैं। पांचवें परिग्रह महाव्रत के सम्बन्ध में चार कषाय, नौ नोकषाय और एक मिथ्यात्व - इन चौदह प्रकार के अन्तरङ्ग और दोपाये, (दासी - दास आदि) चौपाये, (हाथी घोड़ा आदि) खेत, अनाज, वस्त्र, बर्तन, सुवर्णादि धन, यान (सवारी), शयन और आसन इन दस प्रकार के बाह्य ऐसे दोनों मिलाकर चौबीस प्रकार के परिग्रह का नौ कोटियों से त्याग करना चाहिए। इस अभिप्राय से परिग्रह त्याग महाव्रत में दो सौ सोलह उपवास होते हैं। - - छठवाँ रात्रिभोजन त्याग महाव्रत यद्यपि तेरह प्रकार के चारित्रों में परिगणित नहीं है तथापि गृहस्थ के सम्बन्ध से मुनियों पर भी असर आ सकता है अर्थात गृहस्थ द्वारा रात्रि में बनाई हुई वस्तु को मुनि जान-बूझकर ग्रहण करे तो उन्हें रात्रिभोजन का दोष लग सकता है। इस प्रकार के रात्रिभोजन का नौ कोटियों से त्याग करना चाहिए। रात्रिभोजन त्याग व्रत में दस उपवास एकान्तर से होते हैं।
SR No.006246
Book TitleTap Sadhna Vidhi Ka Prasangik Anushilan Agamo se Ab Tak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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