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________________ जैन धर्म की श्वेताम्बर एवं दिगम्बर परम्परा में प्रचलित तप-विधियाँ...185 पारणा, दो में एक उपवास का अंक बढ़ जाने से तीन उपवास एक पारणा, तीन में एक उपवास का अंक घट जाने से दो उपवास एक पारणा, तीन में एक उपवास का अंक बढ़ जाने से चार उपवास एक पारणा, चार में से एक उपवास का अंक घट जाने से तीन उपवास एक पारणा, चार में एक उपवास का अंक बढ़ जाने से पाँच उपवास एक पारणा, पाँच में से एक उपवास का अंक कम कर देने पर चार उपवास एक पारणा चार में एक उपवास का अंक बढ़ा देने पर पाँच उपवास एक पारणा होता हैं। यहाँ पर अन्त में पाँच का अंक आ जाने से पूर्वार्द्ध समाप्त हो जाता है। आगे उल्टी संख्या से पहले पाँच उपवास एक पारणा करना चाहिए। पश्चात पाँच में से एक उपवास का अंक कम कर देने पर चार उपवास एक पारणा, चार में एक उपवास का अंक बढ़ा देने पर पाँच उपवास एक पारणा, चार में से एक उपवास का अंक घटा देने पर तीन उपवास एक पारणा, तीन में एक उपवास का अंक बढ़ा देने पर चार उपवास एक पारणा, तीन में से एक उपवास का अंक घटा देने पर दो उपवास एक पारणा दो में एक उपवास का अंक बढ़ा देने से तीन उपवास एक पारणा, दो में से एक उपवास का अंक घटा देने पर एक उपवास एक पारणा, फिर दो उपवास एक पारणा और एक उपवास एक पारणा करना चाहिए। इस जघन्य सिंहनिष्क्रीडित व्रत में समस्त अंकों का जोड़ साठ होता है इसलिए साठ उपवास होते हैं और स्थान बीस हैं इसलिए पारणे बीस होते हैं। यह व्रत अस्सी दिन में पूर्ण होता है। मध्यम सिंहनिष्क्रीडित व्रत - मध्यम सिंहनिष्क्रीडित व्रत में एक से लेकर आठ अंक तक का प्रस्तार बनाना चाहिए और उसके शिखर पर नौ अंक लिखना चाहिए। उसके बाद उल्टे क्रम से एक तक के अंक लिखना चाहिए। यहाँ भी जघन्य निष्क्रीडित के समान दो-दो अंकों की अपेक्षा एक-एक उपवास का अंक घटाना चाहिए। इस रीति से लिखे हुए समस्त अंकों का जितना जोड़ हो उतने उपवास और जितने स्थान हों उतनी पारणे समझने चाहिए। इस तरह इस व्रत में एक सौ त्रेपन उपवास और तैंतीस पारणे होते हैं। यह व्रत एक सौ छयासी दिन में पूर्ण होता है। उत्कृष्ट सिंहनिष्क्रीडित व्रत - उत्कृष्ट सिंहनिष्क्रीडित व्रत में एक से लेकर पन्द्रह तक के अंकों का प्रस्तार बनाना चाहिए और उसके शिखर में सोलह का अंक लिखना चाहिए। उसके बाद उल्टे क्रम से एक तक के अंक
SR No.006246
Book TitleTap Sadhna Vidhi Ka Prasangik Anushilan Agamo se Ab Tak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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