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________________ जैन धर्म की श्वेताम्बर एवं दिगम्बर परम्परा में प्रचलित तप-विधियाँ...181 उपवास और 5 पारणा इस तरह चालीस दिन लगते हैं। ____ 3. महासर्वतोभद्र व्रत - सात खण्डों वाला एक चौकोर कोष्ठक बनायें। उसमें एक से लेकर सात तक के अंक इस रीति से लिखें कि सब ओर से संख्या का जोड़ अट्ठाईस-अट्ठाईस आये। एक-एक खण्ड में अट्ठाईस-अट्ठाईस उपवास और सात-सात पारणे होते हैं। सातों भङ्गों को मिलाकर एक सौ छयानवे उपवास और उनचास पारणे होते हैं। इसकी विधि पूर्ववत जाननी चाहिए। इसमें कुल दो सौ पैंतालीस दिन लगते हैं। यह तप करने से सर्व प्रकार का कल्याण होता है। 4. त्रिलोकसार व्रत - इसमें नीचे से पाँच से लेकर एक तक, फिर दो से लेकर चार तक और उसके बाद तीन से लेकर एक तक इस तरह बिन्दु रखें कि तीन लोक का आकार बन जायें। इसमें तीस उपवास और ग्यारह पारणे होते हैं। उनका क्रम यह है पाँच उपवास पारणा, चार उपवास पारणा, तीन उपवास पारणा, दो उपवास पारणा, एक उपवास पारणा, दो उपवास पारणा, तीन उपवास पारणा, चार उपवास पारणा, तीन उपवास पारणा, दो उपवास पारणा और एक उपवास पारणा। इस विधि में इकतालीस दिन लगते हैं। इस तप के प्रभाव से कोष्ठबीज आदि ऋद्धियाँ तथा तीन लोक का सार मोक्ष सुख प्राप्त होता है। 5. वज्रमध्य व्रत - इस तप यन्त्र के आदि और अन्त में पाँच-पाँच तथा बीच में घटते-घटते एक बिन्दु रह जाती है। इसमें जितनी बिन्दुएँ हैं उतने उपवास और जितने स्थान हैं उतने पारणे जानने चाहिए। इनका क्रम इस प्रकार है - पाँच उपवास पारणा, चार उपवास पारणा, तीन उपवास पारणा, दो उपवास पारणा, एक उपवास पारणा, दो उपवास पारणा, तीन उपवास पारणा, चार उपवास पारणा और पाँच उपवास पारणा। इस व्रत में उनतीस उपवास और नौ पारणे होते हैं। इस प्रकार यह तप अड़तीस दिन में समाप्त होता है। इस व्रत के फल से इन्द्र, चक्रवर्ती और गणधर का पद, अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान, प्रज्ञा श्रमण की ऋद्धि और मोक्ष प्राप्त होता है। ____6. मृदङ्गमध्य व्रत - इस तप यन्त्र में दो से लेकर पाँच तक और चार से लेकर दो तक बिन्दुएँ रखते हैं। इसमें जितनी बिन्दुएँ हैं उतने उपवास और जितने स्थान हैं उतने पारणे जानने चाहिए। इनका क्रम यह है - दो उपवास पारणा, तीन उपवास पारणा, चार उपवास पारणा, पाँच उपवास पारणा, चार
SR No.006246
Book TitleTap Sadhna Vidhi Ka Prasangik Anushilan Agamo se Ab Tak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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