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________________ तप साधना की उपादेयता एवं उसका महत्त्व...155 के आवश्यक गुण हैं। ईसाई धर्म में तो सेवाभाव को काफी अधिक महत्त्व दिया गया है। आज उसके व्यापक प्रचार का एकमात्र कारण उसकी सेवा भावना व सहयोग भावना ही है। पारिवारिक दृष्टि से सेवाभाव एक आवश्यक तत्त्व है। इस युग को प्रायोगिक रूप देने पर परिवार और समाज में पारस्परिक सौहार्द्रता, संवेदनशीलता, समर्पण भावना, सहयोग भावना, वसुधैव कुटुम्बकम जैसे महान आदर्शों की स्थापना होती है। आभ्यन्तर तप का चौथा भेद स्वाध्याय है। इसका महत्त्व आध्यात्मिक विकास और ज्ञानात्मक विकास दोनों दृष्टियों से है। एक ओर उससे स्व का अध्ययन होता है तो दूसरी ओर ज्ञान का अनुशीलन। ज्ञान और विज्ञान की सारी प्रगति के मूल में स्वाध्याय ही है। आभ्यन्तर तप का प्रथम भेद प्रायश्चित्त है। यह एक प्रकार से अपराधी द्वारा स्वयाचित-स्वेच्छागृहीत दण्ड है। यदि व्यक्ति में प्रायश्चित्त की भावना जागृत हो जाये तो उसका जीवन ही बदल सकता है। जिस समाज में भूल को दण्ड रूप में स्वीकार करने वाले लोग हों, वह समाज निःसन्देह आदर्श का जीता-जागता उदाहरण होता है। इस तरह तप के मुख्य प्रकारों के विविध मूल्य हैं जिनका समुचित मूल्यांकन सहज नहीं है।87 __तप-साधना भारतीय संस्कृति का प्राण रही है। श्री भरतसिंह उपाध्याय के शब्दों में भारतीय संस्कृति में “जो कुछ भी शाश्वत है, जो कुछ उदात्त एवं महत्त्वपूर्ण तत्त्व है,वह सब तपस्या से ही सम्भूत है। तपस्या से ही इस राष्ट्र का बल या ओज उत्पन्न हुआ। तपस्या भारतीय दर्शनशास्त्र की ही नहीं, अपितु उसके समस्त इतिहास की प्रस्तावना है। प्रत्येक साधना-प्रणाली वह आध्यात्मिक हो, चाहे भौतिक, सभी तपस्या की भावना से अनुप्राणित है।" भारतीय संस्कृति में तप के महत्त्व को अधिक स्पष्ट करते हुए काका कालेलकर लिखते हैं कि “बुद्धकालीन भिक्षुओं की तपश्चर्या के परिणामस्वरूप ही अशोक के साम्राज्य का और मौर्यकालीन संस्कृति का विस्तार हो पाया। शंकराचार्य की तपस्या से हिन्दू-धर्म का संस्करण हुआ। महावीर की तपस्या से अहिंसा धर्म का प्रचार हुआ। चैतन्य महाप्रभु, जो मुख शुद्धि के हेतु एक हरे भी मुँह में नहीं रखते थे, उनके तप से बंगाल में वैष्णव संस्कृति विकसित हुई।'88 ___यह सब तो भूतकाल के तथ्य हैं, लेकिन वर्तमान युग का जीवन्त तथ्य है - महात्मा गाँधी और अन्य भारतीय नेताओं का तपोमय जीवन, जिन्होंने अहिंसा
SR No.006246
Book TitleTap Sadhna Vidhi Ka Prasangik Anushilan Agamo se Ab Tak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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