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________________ तप साधना की उपादेयता एवं उसका महत्त्व...123 प्रकाश डाला गया है। सोमप्रभसूरि (तेरहवीं शती) रचित सिन्दूरप्रकरण में तप का मूल्यांकन करते हुए कहा गया है कि यत् पूर्वार्जितकर्मशैल कुलिशं, यत्कामदावानलज्वालाजालजलं यदुप्रकरण, ग्रामाहिमन्त्राक्षरम्। यत्प्रत्यूहतमः समूहदिवसं, यल्लब्धि लक्ष्मीलता मूलं तद्विविधं यथाविधि तपः, कुर्वीतवीतस्पृहः ।।81।। तप का प्रभाव अचिन्त्य है। यह तप पूर्व सञ्चित कर्म रूपी पर्वतों के लिए वज्र समान, काम रूपी दावानल को शान्त करने के लिए जल समान, अत्यन्त उग्र इन्द्रिय समूह रूपी सर्प विष को दूर करने के लिए मन्त्राक्षर समान तथा विघ्न रूप गाढ़ अन्धकार का भेदन करने के लिए दिन के समान है। इसका स्पष्टार्थ यह है कि जो आत्माएँ निस्पृह भाव से विधि पूर्वक तपाराधना करती हैं उन आत्माओं के द्वारा पूर्व भवों में उपार्जित किये गये कर्म रूपी पर्वतों को तप रूपी वज्र क्षणभर में विनष्ट कर देता है, जिसके हृदय में काम रूपी दावानल की प्रचण्ड ज्वालाएँ सुलग रही हों वह आत्मा तप धर्म रूप जल द्वारा उन ज्वालाओं को शान्त कर देता है, अत्यन्त उग्र स्वभावी इन्द्रियों के विष को तप रूपी मन्त्राक्षर क्षणार्ध में दूर कर देते हैं। विघ्न रूप गाढ़ अन्धकार तपाराधना रूप दिवस द्वारा नष्ट हो जाता है तथा लब्धि रूपी लक्ष्मी लता की जड़ तपाराधना है अर्थात तपाराधना द्वारा अनेक प्रकार की लब्धियाँ प्राप्त होती हैं। इसलिए निस्पृह भाव से विधि पूर्वक तप करना चाहिए। सिन्दूरप्रकरण के ग्रन्थकार तप धर्म के मूल्य का वर्णन करते हुए यह भी कहते हैं कि यस्माद् विघ्नपरंपरा विघटते, दास्यं सुराः कुर्वते, कामः शाम्यति दाम्यतीन्द्रियगणः, कल्याणमुत्सर्पति । उन्मीलन्ति महर्धयः कलयति, ध्वंसं चयः कर्मणां, स्वाधीनं त्रिदिवं शिवं च भवति, श्लाघ्यं तपस्तन्न किम्।।82।। तप धर्म की आराधना से विघ्न की परम्परा का नाश होता है, देवता सेवा करते हैं, कामवासनाएँ शान्त हो जाती हैं, इन्द्रिय नियन्त्रण की शक्ति प्रगटती है, कल्याण का विस्तार होता है, महान् ऋद्धियाँ प्राप्त होती हैं, कर्म समूह का नाश होता है, स्वर्ग स्वाधीन होता है और मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है। इस तरह तपोयोग निर्मूलत: प्रशंसा योग्य है।
SR No.006246
Book TitleTap Sadhna Vidhi Ka Prasangik Anushilan Agamo se Ab Tak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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